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Indira Ekadashi 2020: इंदिरा एकादशी 13 सितंबर को मनाई जाएगी, जानिए क्यों है इसका पितृपक्ष में विशेष महत्व

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक,इंदिरा एकादशी के नाम से आश्विन मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। 13 सितंबर रविवार को इंदिरा एकादशी इस साल पड़ रही है।

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक,इंदिरा एकादशी के नाम से आश्विन मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। 13 सितंबर रविवार को इंदिरा एकादशी इस साल पड़ रही है। पितृवक्ष के दौरान इस एकादशी के व्रत को महत्व बहुत होता है। मान्यता है कि जन्म-मरण के चक्र से पुण्य प्रभाव से व्यक्ति इस व्रत से मुक्त होता है। 
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अगर पुण्य पितरों को इस व्रत का दान देते हैं तो मोक्ष की प्राप्ति उन्हें होती है। इतना ही नहीं भगवान श्री हरि विष्‍णु के श्री चरणों में बैकुण्ठ धाम के स्‍थान प्राप्त होता है। कहते हैं कि इंदिरा एकादशी व्रत के पुण्य  से मोक्ष उन्हें मिलता है जिन्हें नरक लोक का कष्ट यमलोक में यमराज देते हैं। 
ये है इंदिरा एकादशी व्रत एवं पूजा मुहूर्त
12 सितंबर शनिवार के दिन आश्विन मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी तिथि 3 बजकर 43 मिनट से शुरु हो रही है। वहीं 13 सितंबर रविवार को 2 बजकर 46 मिनट पर इसका समापन होगा।  13 सितंबर रविवार को इंदिरा एकादशी का व्रत होगा। 
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ये है पारण का समय
14 सितंबर सोमवार के दिन इंदिरा एकादशी व्रत करने वाले लोग सुबह 6 बजकर 9 मिनट से 8 बजकर 38 मिनट के बीच में पारण का समय है उस दौरान अपना व्रत पूरा कर सकते हैं। 
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ये है इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व
हिंदू धर्म के मुताबिक, इंदिरा एकादशी पितृपक्ष में आती है और अधिकतर लोग इस दिन व्रत रखते हैं। कहा जाता है कि पितरों को दान इस व्रत से मिलने वाले पुण्य से करना होता है। ऐसा करने से मोक्ष की प्राप्ति मिलती है साथ ही संतानों के कल्याण, वंश वृद्धि और सुखमय जीवन का आशीर्वाद मिलता है। मान्यताओं के अनुसार, हर घर में इस व्रत को करना चाहिए। कहते हैं कि मृत्यु के बाद बैकुण्ठ धाम में इस व्रत को करने वाला व्यक्ति जाता है। 
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ये है इंदिरा एकादशी की पूजा
भगवान विष्‍णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा इंदिरा एकादशी के दिन करते हैं। अपने पितरों की मुक्ति या मोक्ष के लिए भगवान विष्‍णु से पूजा के दौरान प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्‍णु से इस दौरान पितरों द्वारा किए गए गलत कर्मों की क्षमा मांगते हैं। पितरों के नाम से श्राद्ध पूजा खत्म होने के बाद करते हैं। उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देते हैं। फलाहार ही इस व्रत में खाना होता है। उसके बाद व्रत अगले दिन पारण में पूर्ण होता है। 
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