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विदेशों से मंगाए जाते हैं चिप, एक मेट्रो टोकन बनाने में आता है इतना खर्चा, कीमत सुन रह जाएंगे दंग

आज के दौर में सभी लोग मेट्रो का सफर करते हैं लेकिन क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि जिस टोकन का आप मेट्रो के सफर में इस्तेमाल करते हैं, उसको बनाने में कितनी लागत आती है? और इसे कैसे बनाया जाता है?

मेट्रो आज दुनियाभर के लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी हैं और भारत में भी मेट्रो लोगों की लाइफ का हिस्सा बन गई है। खासतौर पर दिल्ली वालों के लिए मेट्रो किसी लाइफलाइन से कम नहीं है क्योंकि इसके बिना एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए दिल्ली वालों को लंबे जाम से होकर गुजरना पड़ता है। दिल्ली का जाम तो फिर किसी भी छुपा नहीं है।
ऐसे में स्कूल से लेकर ऑफिस हर जगह जाने के लिए लोग ज्यादा से ज्यादा मेट्रो का यूज करते हैं। दिल्ली मेट्रो की खासियत ही यही है कि ये सस्ती होने के साथ-साथ कंफर्टेबल भी है। रोजाना मेट्रो में सफर करने वाले लोग समय बचाने के लिए मेट्रो कार्ड का इस्तेमाल करते हैं लेकिन कभी-कभी जाने वाले और कुछ लोग मेट्रो के लिए टोकन लेना ही पसंद करते हैं।
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मगर क्या आपने कभी ये बात जानने की कोशिश की है कि जिस मेट्रो टोकन को आप अपनी यात्रा के लिए यूज करते हैं वो कैसे बनाया जाता है और उसे बनाने में कितना खर्च लगता है। अगर आपने कभी इस बारे में नहीं सोचा है और अब आप ये जानना चाहते है कि तो ये आर्टिकल आपके बहुत काम का है क्योंकि आज हम आपको टोकन की लागत और उसे कैसे बनाते है बताने वाले हैं।
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दरअसल, मेट्रो टोकन में एक चिप लगी होती है जो सबसे ज्यादा अहम होती है। ऐसे में कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली मेट्रो में यूज होने वाले टोकन में जिस चिप को लगाया जाता है, वो चिप विदेशों से मंगाए जाते हैं। इसके अलावा बाकि टोकन को इंडिया में ही बनाया जाता है। चिप और टोकन के ऊपरी हिस्से को मिलाकर एक टोकन बनाया जाता है।
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टोकन को PVC सामग्री से तैयार किया जाता है। टोकन का इस्तेमाल अक्सर लोग एंट्री के लिए दिल्ली मेट्रो में करते हैं। जानकारी के मुताबिक, एक टोकन को बनाने में 16 रूपये की लागत आती है। इसी को देखते हुए अब दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने क्यूआर कोड बेस्ड टिकट सिस्टम लागू किया है, क्यूआर कोड बेस्ड टिकट सिस्टम में टोकन के बजाय पेपर वाले टिकट यात्रियों को दिए जाएंगे।
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क्यूआर कोड बेस्ड टिकट सिस्टम टोकन की तुलना में बहुत सस्ता है। डीएमआरसी ने जानकारी दी थी कि एक महीने के अंदर-अंदर 74 लाख से अधिक क्यूआर कोड वाले टिकट बेचे गए हैं। इस टिकट की बिक्री बढ़ने से टोकन की बिक्री काफी घट गई है। डीएमआरसी ने क्यूआर कोड वाले टिकट सिस्टम को 8 मई को लागू किया था और जब से टोकन की बिक्री में 30 पर्सेंट से ज्यादा की गिरावट देखी गई है।
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ऐसे में रेल कॉर्पोरेशन की ये ही कोशिश है कि टोकन सिस्टम को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए और पेपर टिकट सिस्टम को प्रभाव में लाया जाए। इससे मेट्रो टोकन में लगने वाले खर्च को बचाया जा सकेगा। टोकन की तुलना में पेपर वाले टिकट की लागत डीएमआरसी को कम पड़ेगी। इसी वजह से वो जल्द से जल्द टोकन सिस्टम को पूरी तरह से खत्म करना चाहते हैं।

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