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कालभैरव जयंती 2019: कालभैरव का जन्म हुआ था शिव के क्रोध से, इनसे काल भी होता है भयभीत

अपना एक अलग और विशेष महत्व सारे ही देवी-देवताओं का हिंदू धर्म में है। हिंदू धर्म में भैरव बाबा की भी मान्यता बहुत है। धार्मिक मान्यताओं में कहा गया है

अपना एक अलग और विशेष महत्व सारे ही देवी-देवताओं का हिंदू धर्म में है। हिंदू धर्म में भैरव बाबा की भी मान्यता बहुत है। धार्मिक मान्यताओं में कहा गया है कि भगवान शिव का ही बाबा भैरव एक रूप हैं। अष्टमी जो मार्गशीर्ष माह के कृष्‍ण पक्ष को आती है उसे भैरव अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। 
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पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव ने भैरव बाबा का रूप मार्गशीर्ष कृष्‍ण पक्ष अष्टमी पर लिया था। इसी वजह से काल भैरव की जयंती इस दिन मनाई जाती है। काल भैरव अष्टमी इस साल 19 नवंबर यानी मंगलवार को मनाई जाएगी। काल भैरव की पूजा-विधि कथा और महत्व के बारे में हम आपको बताते हैं। 
पाप हो जाते हैं नष्ट

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शास्‍त्रों में कहा गया है कि शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश भैरवाष्टमी के दिन व्रत और पूजा करने से होता है। सारे पाप भैरव बाबा की पूजा-अर्चना इस दिन करने से खत्म हो जाते हैं। कहते हैं श्री कालभैरव जी दर्शन-पूजन इस दिन शुभ फल देता है। जो भी इस दिन काल भैरव भगवान की पूजा और अर्चना करते हैं उनके सारे कष्ट दूर होते हैं। कहा जाता है कि काल भैरव की साधना बहुत मुश्किल है। 
जन्म हुआ शंकर भगवान के क्रोध से

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पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि भगवान भोलेनाथ की वेशभूषा और उनके गणों का सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने मजाक उड़ा दिया था। उस समय भगवान ब्रह्मा पर शिव जी को बहुत क्रोध आया था। तभी उनके क्रोध से विशालकाय दंडधारी प्रचंडकाय काया पैदा हुई और ब्रह्मा जी का वध करने के लिए आगे बढ़ी। कहा जाता है कि ब्रह्मदेव के एक शीश को इस काया ने अपने नाख्‍ून से काटा था। उस दौरान उस काया और ब्रह्माजी के बीच भगवान शिव ने आकर उसे शांत किया और ब्रह्मा जी को बचाया। ऐसा कहा जाता है कि यह विशाल काया जब पैदा हुई थी उस दिन मार्गशीर्ष मास की कृष्‍णाष्टमी थी। यह काया भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुई थी जिसके बाद उनका नाम भैरव पड़ गया। 
प्रसन्न होंगे भैरव बाबा इस तरह पूजा-अर्चना से

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अष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान करके पितरों का तर्पण व श्राद्ध करने के बाद कालभैरव की पूजा करें। कहते हैं शुभ फलदायी इस दिन उपवास रखन चाहिए। भैरव बाबा की पूजा इस दिन की मध्यरात्रि धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द, सरसों तेल से करनी चाहिए। कहते हैं कि इस दिन व्रत के साथ जागरण भी रात्रि के दिन करना चाहिए बहुत महत्व होता है। शास्‍त्रों में कहा गया है की काला कुत्ता भैरव बाबा की सवारी होता है। इसलिए कहते हैं कि जब आपको व्रत समाप्त हो जाए तो काले कुत्ते को सबसे पहले भोग लगाना होता है। मान्यताओं के अनुसार, कुत्ते को इस दिन भोजन कराने से भरैव बाबा प्रसन्न हो जाते हैं। 
इनसे भय खाता है काल भी 

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मान्यताओं के अनुसार, काल भी भैरव बाबा से डरता है। इसी वजह से काल भैरव से भी उन्हें जाना जाता है। दिशाओं का रक्षक और काशी का संरक्षक भी भैरव बाबा को कहते हैं। शत्रुओं का नाश इस दिन व्रत रखने से होता है। भय का नाश भी काल भैरव की पूजा करने से होता है और त्रिशक्ति समाहित भी इनके अंदर है। कई रूपों में यह विराजमान हैं और इन्हें बटुक भैरव और काल भैरव के नाम से भी इन्हें जाना और पूजा जाता है। रूद्र, क्रोध, उन्मत्त,कपानी, भीषण और संहारक के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। भैरवनाथ के नाम से भी इन्हें जानते हैं। इनकी पूजा नाथ सम्प्रदाय में विशेष तौर पर होती है। 
समाप्त होते हैं मृत्यु के समान कष्ट

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कहते हैं कि भैरव बाबा की पूजा करने से शत्रु से मुक्ति मिलती है। संकट, कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत मिलती है। साथ ही भयमुक्त भी मनुष्य इनकी पूजा करने से होते हैं। साथ ही साहस का संचार भी होता है। इस दिन भैरव बाबा की पूजा-आराधना शनि, राहु, केतु और मंगल जैसे मारकेश ग्रहों के काेप से पीड़ित लोगों को करनी चाहिए। कहते हैं मृत्यु तुल्य कष्ट भी भैरव के जप, पाठ और हव से समाप्त होता है। 

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