पूरे देशभर में आज बकरीद ईद का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने की दस तारीख को बकरीद का त्योहार होता है। तो आइए आप भी जान लीजिए आखिर बकरीद पर कुर्बानी क्यों दी जाती है? वैसे कुर्बानी की कहानी एक तरह से कुर्बानी का जज्बा होता है।
बता दें कि यादि हजरत इब्राहिम अल्लाह की इस मनोकामना को पूरा करने के लिए उनकी राह में अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार नहीं होते तो शायद आज यह त्योहार मनाने की परंपरा शुरू ही नहीं होती। हजरत इब्राहिम अल्लाह को समर्पित ऐसे व्यक्ति थे,जो उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तैैयार रहा करते थे। ऐसा कहा जाता है कि एक बार कुछ ऐसा हुआ जब अल्लाह ने उनकी परीक्षा लेनी चाही और उसी के अनुरूप हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया गया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें।
अल्लाह की इसी बात को सुनते हुए हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की राह में अपने बेटे को कुरबान करने का निर्णय लिया। बेटे को कुर्बानी देते वक्त उसका प्यार उन पर हावी न हो जाए इसी वजह से उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। हजरत ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छूरी चला दी। जब उन्होंने अपनी आंखों से काली पट्टी हटाई तब उन्होंने देखा कि उनका बेटा उनके साथ में सही सलामत जिंदा खड़ा हुआ है उसकी जगह दुम्बा यानि बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा है। यही वजह है जब अल्लाह की राह में कुर्बानी की शुरूआती हुई।
बकरे का पूरा गोश्त नहीं रख सकते…
बकरीद के त्योहार पर जिस जानवर की कुर्बानी होती है उसके पूरे गोश्त को अकेले परिवार के लिए नहीं रखा जाता है। पूरे गोश्त को तीन भागों में विभाजित किया जाता है। एक हिस्सा गरीबों को बांटा जाना बहुत जरूरी होता है। दूसरा हिस्सा अपने रिश्तेदारों को बांटा जाना चाहिए जबकि तीसरा हिस्सा घर में रखा जाना होता है। इतना ही नहीं कुर्बानी वाले जानवर का स्वस्थ होना सबसे ज्यादा जरूरी होता है। यदि वह बीमार है और आप उसकी कुर्बानी दे रहे हैं तो यह जायज नहीं होगा। मान्यता है कि जानवर के शरीर पर जितने बाल होते हैं,उनकी संख्या के बराबर नेकियां कुर्बानी करने वाले के हिस्से में लिखाी जाती है।
ये वजह है शैतान पर पत्थर मारने की…
हज यात्रा के आखिरी दिन कुर्बानी देने के बाद रमीजमारात पहुंचकर शैतान को पत्थर मारने का जो रिवाज है,वह हजरत इब्राहिम से ही जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बानी देने के लिए चले तो शैतान ने उन्हें बहुत बरगलाने की कोशिश करी थी। यह वजह है हजयात्री शैतान के प्रतीकों को वहां पर पत्थर बरसातें हैं।
क्या फर्क है ईद और बकरीद में?
ईद का त्योहार रमजान के पाक महीने के खत्म होने पर आता है। रमजान को इस्लाम का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इसमें 30 दिन के रोजे रखने होते हैं और फिर चांद को देखकर ईद मनाई जाती है। ईद के मौके पर सेवेइयां बनती हैं। इसके बाद बकरीद मनाई जाती है जिस पर गोश्त से बने पकावान ही खाने में परोसे जाते हैं।