5 जून यानि आज ईद-उल-फितर है। इसे मीठी ईद भी कहा जाता है। इस्लाम में ईद सबसे बड़े पर्वों में शामिल है। पूरे एक महीने के रोजे रखने के बाद चांद दिखने के साथ ही ईद का उत्सव जोरो-शोरो से शुरू हो जाता है। वहीं ईदगाहों में नमाज अदा होने के बाद बधाइयों का सिलसिला दिनभर में चलता है।
दुनिया भर में ईद की खुशी पर ऊपर वाले से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगी जाती है। ईद के दिन पकवान बनाना नए कपड़े पहनना तो हर किसी को पता होगा,लेकिन इस त्योहार से जुड़े रिवाजों के पीछे के महत्व के बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे। तो आइए जानते हैं ईद-उल-फितर के बारे में कुछ खास बातों के बारे में।
1.रमजान के बाद
मीठी ईद इस्लाम में साल में एक महीने मनाए जाने वाले रमजान के बाद मनाया जाता है। इसके बाद पूरे महीने रोजे रखने के बाद चांद का दीदार हो जाने पर यह त्योहार मनाया जाता है। इसे आत्म-मूल्यांकन का त्योहार भी कहा जाता है।
2.ईद-उल-फितर
ईद-उल-फितर दरअसल ये दो शब्द हैं और सुनने में भी ईद और फितर बहुत छोटे हैं। लेकिन इनके पीछे एक काफी बड़ा अर्थ छुपा हुआ है। ईद के साथ फितर जोड़कर ये पता कराया जाता है। कि रमजान के समय लगाए गए सभी प्रतिबंध अब खत्म हो गए है। अब सभी की ईद हो गई है।
3.मुस्लिम कैलेंडर की शुरूआत
मीठी ईद के त्योहार पर चांद देखने के पीछे भी एक बड़ी वजह ये है कि रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर नए महीने की पहली तारीख के रूप में देखा जाता है। बता दें कि इस दिन इस्लामिक कैलेंडर की शुरूआत होती है।
4.रुहानी तरीके से
ईद उल फितर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि बाकी सभी त्योहारों की तरह इस त्योहार के पीछे कोई कहानी,कोई बड़ी घटना नहीं जुड़ी हुई है। जिससे साफी प्रतीत होता है कि यह त्योहार रूहानी तरीके से मनाया जाता है।
5.ईद की शुरूआत
काफी कम लोग ये बात जानते हैं कि पूरी दुनिया में मनाई जाने वाली ईद की शुरूआत कब से शुरू हुई है। बता दें कि दुनिया में सबसे पहला ईद-उल-फितर का त्योहार 624 ईस्वी में मनाया गया था। तभी से ये त्योहार दुनिया भर में मनाएं जाने लगा।
6.अल्लाह की रहमत
ईद के त्योहार के बाद ईदगाह में नजाम अदा करने के बाद एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ईद मुबारक बोलते हैं। इतना ही नहीं सभी लोग एक साथ मिलकर खाना खाते हैं। इसके पीछे वजह बताई जाती है कि आपसी प्रेम व भाईचारे को अपनाने वालों अल्लाह की रहमत बनती है।
7.सफेद रंग है पवित्र
ईद के दिन नहाने के बाद नए कपड़े पहनकर लोग ईदगाह जाते हैं। इस दिन ज्यादातर रोजेदार सफेद कपड़े ही आमतौर पर पहने दिखाई देते है। इन सफेद कपड़ों को पहनने का मुख्य कारण ये है कि सफेद रंग पवित्रता और सादगी का प्रतीक होता है।
8.आखिरी दस दिन
रमजान महीने में 21, 23, 25, 27 और 29 वीं शब को शब-ए-कद्र कहा गया है। ये आखिरी दस दिन एकांत साधना होता है।
9.दान देना होता है जरूरी
ईद की नमाज से पहला फितर दिया जाता है। जिनकी माली हालत अच्छी है, उनको अपनी आमदनी में कुछ हिस्सा देना होता है।
10.ईद की नमाज
ईद की नमाज शहर काजी पढाते हैं। ईद की नमाज के बाद खुतबा होता है।
11.खाद्य पदार्थों का दान
जकात-उल-फितर के रूप में गरीबों को दान दिया जाता है। इसमें खाद्य पदार्थों को देना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका उद्देश्य यह है इस दिन पर कोई भूखा न रह जाए। जिससे इस त्योहार पर हर किसी के चेहरे पर बराबरी से मुस्कान होती है।