इस बार वट सावित्री व्रत का पर्व शुक्रवार 22 मई को है। विशेषतौर पर यह व्रत सुहागिन महिलाओं के होता है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को होने वाला यह व्रत पति की लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाता है। मान्यता है यह भी है कि इस दिन व्रत रखकर विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से सौभाग्यवती जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आप भी 22 मई वट सावित्री के दिन इस शुभ मुहूर्त में इस तरह पूजा करके आपको मिलेगा अखंड सौभग्यवती वरदान।
प्राचीन कथानुसार बताया गया है इसी दिन देवी सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों को मौत के मुंह से वापिस खींच लाई थी। इस दिन जो भी शादीशुदा महिला देवी सावित्री का व्रत रखकर पूरे विधि -विधान से पूजा आराधना करती है उन सभी के पति की रक्षा तामाम संकटों से होती है।
वट सावित्री व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि 21 मई को रात 9 बजकर 40 मिनट पर आरंभ होगी, एवं अमावस्या का समापन 22 मई को रात 10 बजकर 10 मिनट पर होगा।
व्रत की पूजा-विधि
इस व्रत को करने वाली सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर नहाने के बाद साफ सुथरे वस्त्र पहने। इसके बाद अपने ईष्ट देव के समक्ष व्रत करने का संकल्प लें। बता दें कि इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक अमावस्या तिथि रहेगी, इसलिए आप विधिवत बरगद के पेड़ का ही अवश्य पूजन करें। पूजन में 24 बरगद के फल, 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष का पूजन किया जाता है। पूजा में 12 पूरियां और 12 बरगद फल को हाथ में लेकर वट वृक्ष पर अर्पित करें।
अब एक लोटा ले और बरगद के पेड़ पर शुद्ध जल अर्पित करें,इसके बाद पेड़ पर हल्दी, रोली और अक्षत से स्वास्तिक बनाकर विधि विधान से पूजन करें। अब धूप-दीप करें और बाद मी कच्चे सूत को 12 बार बरगद के पेड़ पर लपेटते हुए इसकी परिक्रमा करें।
इसके साथ ही आपको ध्यान रखना है पेड़ की परिक्रमा करने के बाद एक चने का दाना भी छोड़ना है। इसके बाद 12 कच्चे धागे वाली माला वृक्ष पर पहननी है और दूसरी स्वयं धारण करें। वहीं शाम के वक्त व्रत खोलने से पहले 11 चने के दाने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर आपको अपना व्रत खोलना है।