इस संसार का उद्भव भगवान भोलेनाथ की कृपा से होता है। वहीं एक दिन यह शिव में ही विलीन हो जाता है। भगवान शिव के विवाह,तपस्या और भक्तों पर कृपा की बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। तभी भोलेबाबा का श्रृंगार,विवाह,तपस्या और उनके गण सब कुछ अद्घितीय हैं। ये जगहें तीर्थ के रूप में जाने और पूज भी जाते हैं।
कहा जाता है कि भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हिमालय के मंदाकिनी इलाके में त्रियुगी नारायण गांव में हुआ था। इस जगह एक पवित्र अग्नि जलती है। इसके बारे में मान्यता है कि यह त्रेतायुग से लगातार ऐसे ही जल रही है और इसी के ठीक सामने भगवान शिवजी मां पार्वती के साथ सात फेरे लेकर शादी के बंधन में बंधे।
बता दें कि सतयुग में जब भगवान शिव ने मां पार्वती से शादी की थी,तो यह हिमवत की राजधानी थी। इस खास जगह पर आज भी हर साल देश से कई लोग संतान प्राप्ति के लिए आते हैं। वहीं साल सिंतबर के महीने में बावन द्वादशी के दिन यहां पर मेले भी लगाएं जाते हैं।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए त्रियुगी नारायण मंदिर से आगे गौरी कुंड कहे जाने वाली जगह पर माता पार्वती ने तपस्या करी थी,जिसके बाद भगवान शिव ने इसी मंदिर में मां पार्वती के साथ ब्याह भी रचाया। बताया जाता है कि उस हवन कुंड में आजतक भी वो ही अग्नि जल रही है।
वैसे शिव और माता पार्वती की शादी के वक्त भाई की सभी रस्में भगवान विष्णु ने और पंडित की रस्में ब्रह्माजी ने पूरी करी थी। यहां पास में ही तीन कुंड बने हुए हैं जो ब्रह्मा,विष्णु और शिवजी के नाम पर हैं। कहा जाता है कि शादी में आने से पहले तीनों ने इन कुंडों के पवित्र जल से नहाए।