विष्णु भगवान की पूजा देवी तुलसी के बिना आधी-अधूरी सी मानी जाती है। कहा जाता है बिना तुलसी के तो विष्णु जी भोग तक नहीं चखते हैं। क्योंकि वह सृष्टि के पालनहारी तुलसी के पौधे को इतना मानते जो हैं। प्राचीन काल के समय की बात है जब जलंधर नाम के राक्षस ले धरती पर आतंक उतार रखा था। पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म उस राक्षस की वीरता का राज था।
ऐसा बताया जाता है कि वृंदा के कारण ही हमेशा विजय होता था। जलंधर के उत्पात से उस वक्त परेशान होकर ऋर्षि-मुनि भगवान विष्णु के पास गए। जिसके बाद काफी सोच-विचार करने के बाद भगवान ने वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग करने के बारे में राय बना ली। उन्होंने योगमाया से एक मृत शरीर वृंदा के घर के बाहर फिंकवा दिया।
वृंदा को उसमें अपने पति का शव नजर आया। अपने पति को मृत समझकर वह उस मृत शरीर पर गिर गई और खूब तेज-तेज से रोने लगी। उस वक्त एक साधु उनके पास आए और कहने लगे बेटी इतनी दुखी मत हो। मैं इस शरीर में जान डाल देता हूं। तभी साधु ने उसमें जान डाल दी। भावों में बहकर वृंदा ने उस शरीर का आलिंगन कर लिया।
वहां उसका पति जलंधर जो देवताओं से लड़ाई करने में लगा हुआ था वो तो वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया बाद में वृंदा को मालूम हुआ कि यह तो भगवान विष्णु का छल है। इस बारे में जब उसको पता लगा तब उसने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि जिस तरह छल से आपने मुझे पति वियोग दिया है ठीक उसी तरह आपको भी स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्युलोक में जन्म जरूर लेना होगा।
वृंदा बस इतना कहकर अपने पति की अर्थी के साथ सती हो गई। जिस जगह पर वो सती हुई वहां पर तुलसी का पौधा उग गया। तब भगवान विष्णु अपने इस झूठ पर शार्मिंदा होकर बोले कि हे वृंदा यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है और तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी।
इस घटना के बाद त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने भगवान राम के रूप में अवतार लिया और सीता के वियोग में कुछ दिन रहे। वैसे यह भी बताया जाता है कि वृंदा ने विष्णु जी को यह श्राप भी दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। तुम भगवान पत्थर के बनोगे और वही भगवान विष्णु का शालिग्राम रूप है।