एक रिक्शा चालक जो पश्चिम बंगाल में अपनी पत्नी वंदनी के साथ धड़ंगा गांव में रहते हैं। इन दोनों की एक 10 साल की बेटी भी है। पत्नी की तबयीत कुछ ठीक नहीं रहती है उन्होंने कई जगह इलाज करवाया। मगर कुछ समय आराम के बाद तबीयत फिर खराब हो जाती। ऐसे ही अचानक एक दिन वंदनी के पेट में तेज दर्द उठा जो उनसे सहन नहीं हो पा रहा था तो ऐसे में हरी ने पुरूलिया के अस्पतालों के चक्कर लगाए, लेकिन कोरोना के चलते किसी ने उनकी पत्नी को भर्ती करने की हिम्मत नहीं दिखाई। लॉकडाउन की वजह से आने जाने के लिए कुछ साधन भी नहीं था। जब कुछ समझ नहीं आया, तो हरी ने 50 रुपये रोजाना भाड़े पर साइकिल ली और बीमार पत्नी व बेटी को लेकर जमशेदपुर के लिए निकल गए।
जमशेदपुर साइकिल से पहुंचे
हरी ने अपनी पत्नी और बेटी को साइकिल पर बैठा कर करीब 100 किमी का सफर तय किया और झारखंड के जमशेदपुर स्थित एक अस्पताल में जा पहुंचा,मगर वहां भी कोई काम नहीं बन पाया। इसके बाद किसी शख्स ने उन्हें ‘गंगा मेमोरियल अस्पताल’ के बारे में बताया और फिर हरी वहां भी पहुंच गए। जहां डॉक्टर्स ने वंदनी की जांच की और मालूम हुआ कि उनका अपैंडिक्स फटा है। इसके बाद उनका तभी ऑपरेशन किया गया जिसके बाद वो 10 दिनों के बाद बिलकुल ठीक हो गईं।
वहीं हरी ने बताया जब मैं पुरुलिया के अस्पतालों में चक्कर काट रहा था तो एक बार को मुझे ऐसा लगा कि मैं अब अपनी पत्नी को नहीं बचा सकूंगा। अस्पताल वालों की बात सुनकर मुझे लगा कि आत्महत्या कर लूं, लेकिन भगवान ने मुझे हौसला दिया और रास्ता भी दिखाया। मैं सीधे जमशेदपुर चला आया और आज सब ठीक हो गया है। अगर मैं यहां नहीं आता तो उसकी जान नहीं बचती। मेरे शहर पुरूलिया में कोई भी गरीबों की जान की परवाह नहीं करता है, हम सब भगवान भरोसे हैं।
डॉक्टर ने की मदद
हरी ने गंगा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टर नागेंद्र सिंह को फरिश्ता बताया। हरी की आर्थिक स्थिति जानने के बाद डॉक्टर ने हरी को साइकिल के भाड़े का खर्च तो दिया ही साथ में पत्नी के फ्री में इलाज समेत खाने का खर्च भी माफ किया। इसके अलावा डॉक्टर ने हरी को नई साइकिल भी दिलवाई ताकि वो पुरूलिया जाकर कुछ काम कर पाए। वहीं परिवार को हॉस्पिटल की एम्बुलेंस से वापस घर के लिए भेजा।