एक पुराना कथन जिसमें शायद सच ही कहा गया है कि न खाने के लिए खाना और ना मरने के लिए जमीन। ये कथन ऐसा है जो शायद देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के इस गांव के लिए एकदम फिट बैठता है। देश के सबसे बड़े सूबे में स्थित आगरा जिले के एक ब्लॉक के गांव छह पोखर में आज भी जहां लोग एक अदद मुठ्ठी भर जमीन के लिए तरस रहे हैं। लेकिन यहां पर लोगों के घर ही क्रबिस्तान में तब्दली हो गए हैं। सुनकर शायद आपको भी यकीन न हो लेकिन सब्र कीजिए और यकीन मानिए की ये बात एक दम सच है। आगरा के छह पोखर गांव में आज भी यह बड़ी समस्या बनी हुई है कि उन्हें अपने छोटे से घरों में ही मृत परिजनों को दफनाने के अलावा कोई और उपाय नहीं मिल रहा है।
घरों को ही बना लिया है कब्रिस्तान
इस गांव के कुछ मुस्लिम परिवारों की हालात मानों किसी भी इंसान को अंदर से झकझोर कर रख देगी। इस गांव में कई सारे ऐसे परिवार हैं जिन्होंने अपने घरों में ही एक नहीं बल्कि कई सारे परिजनों के शव दफना रखे हैं। हालात कुछ ऐसे है कि कोई-कोई तो कब्र के पास ही खाना बनाता है,तो कुछ उसी क्रब के ऊपर बैठकर खाना भी खाते हैं। वो अपने मन से ये सब नहीं करते हैं बल्कि उन्हें अपने पूर्वजों के कब्रों पर इस तरह का काम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। उन्हें ऐसा लगता है कि वह अपने मृत परिजनों को ऐसा करके अपमान कर रहे हैं। लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं आखिर वो करें तो करें क्या? क्योंकि ये गांव ऐसा है जहां पर मुर्दों को दफनाने के लिए कोई सार्वजनिक जगह ही उपलब्ध नहीं है।
सूत्रों के अुनसार निजी एडमिनिस्ट्रेशन ने कब्रिस्तान के लिए वहां के लोगों को एक तालाब अलॉट किया था। इसके बाद गरीब परिवार की ऐसी हालत हुई कि वह अपने घरों के अंदर ही मृतकों को दफन करने के लिए मजबूर हो गए। गांव में रहने वाली सलीम शाह ने बताया कि आप जहां बैठे हैं वह मेरी दादी की कब्र है। उनको हमने अपने बैठने वाले कमरे में ही दफनाया है। वहीं दूसरे घर में रिंकी बेगम ने कहा कि उनके घर के पिछवाड़े में 5 लोगों को दफन किया जा चुका है जिनमें से उनका एक 10 महीने का बेटा भी शामिल है। रिंकी की यह तकलीफ शब्दों में बयां कर पाना बेहद ही मुश्किल है।
वहीं एक अन्य महिला जिनका नाम गुड्डी है उन्होंने बतलाया कि हम जैसे गरीबों के लिए मरने के बाद भी कोई मर्यादा नहीं है। घर छोटा होने की वजह से लोग कब्रों पर बैठने और चलने के लिए मजबूर है। यह कितना ज्यादा अपमानजनक है। सबसे बड़ी बात ये भी है कि कई सारी कब्र आज भी ऐसी हैं जिन्हें पक्का नहीं बनाया गया है ताकि वह ज्यादा जगह न ले सके। सिर्फ इतना जरूर किया जाता है कब्रों को अलग करने के लिए की उन पर एक अगल साईज का पत्थर रख दिया जाता है।
इस मुद्दे को लेकर गांव में कई बार विरोध भी किया जा चुका है। साल 2017 में मंगल खान के एक शख्स की मौत पर उसके परिवार वालों ने शव को तबतक दफनाने से मना कर दिया था। जब तक की गांव में कब्रिस्तान के लिए जमीन न मिल जाए। बाद में अधिकारियो ने उन्हें वहां पर किसी तरह से समझा-बुुझा कर तालाब के पास में ही दफनाने के लिए राजी कर लिया था। लेकिन आज तक भी कब्रिस्तान का वादा पूरा नहीं किया गया। एक एक फैक्ट्री में काम करने वाले मुनीम खान ने बताया कि हम केवल अपने पूर्वजों के लिए थोड़ी जमीन ही तो मांग रहे हैं। गांव के पास में ही हिंदुओं के लिए भी तो श्मशान घाट की जमीन बनी हुई है। लेकिन हमें ऐसे अपनी जिंदगी गुजरनी पड़ रही है।
एक बार फिर आश्वासन दिया जिलाधिकारी ने
गांव के प्रधान सुंदर कुमार ने कहा कि उन्होंने बहुत बार अधिकारियों को बुलाकर मुस्लिम परिवार वालों के लिए कब्रिस्तान के लिए जमीन दिलवाने के लिए बोला है लेकिन उस पर कोई कार्रवाई ही नहीं की जा रही है। वहीं जिलाधिकारी रविकुमार एनजी का कहना है कि उन्हें तो इस बात की जानकारी थी ही नहीं। अब उनका कहना है कि मैं अधिकारियों की एक टीम को गांव में भेजूंगा और कब्रिस्तान के लिए जरूर अनुसार जमीन का ब्यौरा मंगवाऊंगा।