शारदीय नवरात्रि का चौथा व्रत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि आज यानी 20 अक्टूबर मंगलवार को पड़ा है। देवी मां का चौथा स्वरूप मां कूष्मांडा है और नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा होती है। चलिए आपको कूष्मांडा मां की महिमा, स्वरूप, पूजा विधि और मंत्र से अवगत कराते हैं।
ये है मां कूष्माण्डा का स्वरूप
कूष्माण्डा माता की भुजाएं आठ होती हैं इसी कारण से उन्हें अष्टभुजा कहते हैं। कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा मां कूष्माण्डा के सात हाथों में होता है। सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जाप की माला आठवें हाथ में हैं। कुम्हड़े की बलि मां कुष्मांडा को बहुत पसंद है। कूष्माण्ड कहते हैं संस्कृत में कुम्हड़े को। इसी वजह से कूष्माण्डा मां दुर्गा के चौथे स्वरूप को कहते हैं।
ये है मां कूष्माण्डा की महिमा
मान्यताओं के अनुसार, सूर्यमण्डल के अंदर लोक में मां कूष्माण्डा का निवास है। मां कूष्माण्डा के अंदर सिर्फ सूर्य के अंदर निवास करने की क्षमता है। दैदीप्यमान चारों दिशाएं मां कूष्माण्डा के तेज से होती हैं। इसी वजह से शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति भी इनके दैदीप्यमान है। इन्हीं का तेज ब्रह्मांड की सारी वस्तुओं और प्राणियों में व्याप्त है। अपने भक्तों के असाध्य रोगों से मां कूष्माण्डा की पूजा नवरात्रि में करने से मुक्त होते हैं साथ ही माता अच्छी सेहत का भी आशीर्वाद उन्हें देती हैं।
मां कूष्माण्डा की पूजा इस विधि से करें
नवरात्रि में चौथे दिन माता कूष्मांडा को सबसे पहले कलश की पूजा करके नमन करें। हरा रंग बहुत मां कूष्माण्डा को पसंद है। हरे रंग के कपड़े इस दिन पूजा के समय धारण करें। मां कूष्मांडा को जल पुष्प अर्पित करके आपके परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहे और सभी का स्वास्थ्य अच्छा हो। मां कूष्माण्डा की विधि-विधान से पूजा करने से लम्बे समय से बीमार व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते हैं। सच्चे मन से फूल, धूप, गंध, भोग देवी मां को अर्पित करें। मालपुए का भोग मां कुष्मांडा को पूजा के बाद लगाएं। फिर किसी ब्राह्मण को प्रसाद दान में दे दें। उसके बाद वही प्रसाद घर के सभी परिजनों को दें।
माता के इस मंत्र का जाप करें
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।