हिंदू शास्त्र में एकादशी के व्रत का खास महत्व बताया गया है। एकादशी का व्रत हर महीने में दो बार आता है। भगवान विष्णु जी की पूजा-अर्चना एकादशी के व्रत में विशेष तौर पर की जाती है। अश्विन माह की पापाकुंशा एकादशी का व्रत 27 अक्टूबर मंगलवार यानी आज है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर पापाकुंशा एकादशी पड़ रही है।
एकादशी के व्रत में भक्त शुभ फल के लिए उपवास, पूजा-पाठ,कीर्तन और भगवान विष्णु का नाम जपते हैं। भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा एकादशी के व्रत पर की जाती है और साथ ही मनचाहा फल मिलता है। जो व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का व्रत रखते हैं वह सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं। व्यक्ति के मन और आत्मा दोनों ही यह व्रत रखने से शुद्ध हो जाते हैं।
मान्यता के अनुसार,एक हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने से जो व्यक्ति को फल प्राप्त होता है वह समान फल पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने से मिलता है। पापाकुंशा एकादशी व्रत के अलावा ऐसा कोई दूसरा व्रत नहीं है जिसका समान फल मिलता है।
पापाकुंशा एकादशी की रात में जो व्यक्ति जागरण करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। शुभ फल की प्राप्ति इस एकादशी के दिन दान करने से होती है। पद्म पुराण के मुताबिक, यमराज के दर्शन उस व्यक्ति को नहीं होते जो सुवर्ण,तिल,भूमि,गौ,अन्न,जल,जूते और छाते का दान करते हैं।
प्रसन्न होंगे भगवान पद्मनाभ
भगवान विष्णु के दिव्य रूप की पापाकुंशा एकादशी के दिन पूजा करते हैं। इसके बाद व्रत का संकल्प एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि करके करना होता है। उसके बाद चन्दन,अक्षत,मोली,फल,फूल,मेवा आदि भगवान विष्णु जी को अर्पित करते हैं। फिर एकादशी की कथा सुनते हैं और ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप जितना हो सकेे उतना करते हैं। उसके बाद धूव व दीप से विष्णु भगवान की आरती करते हैं।
ये है पापाकुंशा एकादशी की व्रत कथा
प्राचीन वक्त में एक क्रूर बहेलियां विंध्य पर्वत पर रहता था। हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति में उसने अपनी पूरी जिंदगी बिता दी। बहेलिए के अंतिम समय पर यमराज के दूत उसे लेने के लिए आए। तब बहेलिए से यमदूत ने कहा कि तुम्हारे जीवन का आखिरी दिन कल है हम तुम्हें कल लेने के लिए आएंगे। बहेलिया ने यमदूत की यह बात जैसे ही सुनी वह डर गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंच गया और फिर उसने प्रार्थना की महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर।
उसके बाद बहेलिए से प्रसन्न होकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि आश्विन शुक्ल एकादशी अगले दिन आ रही है इस दिन तुम विधि पूर्वक से व्रत रखना। महर्षि अंगिरा की बहेलिये ने बात मानकर पापाकुंशा एकादशी का व्रत विधि पूर्वक रखा और विष्णु लोक को वह भगवान की कृपा से व्रत पूजन के बल से गया। उसके बाद इस चमत्कार को जब यमराज के दूत ने देखा तो वह अपने साथ बहेलिया को बिना लिए ही यमलोक वापस चले गए।