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रक्षाबंधन 2022 : सूतक काल में भी बना सकते हैं रक्षाबंधन का त्योहार, जानें कैसे

पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व हर साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व हर साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इसे राखी और राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक होता है। इस पर्व पर बहनें अपने भाई के माथे पर टीका और आरती उतारते हुए कलाई पर राखी बांधती हैं। 
राखी का पर्व महज धागों का त्योहार नहीं है, इसके साथ कई धार्मिक क्रियाएं भी शामिल होती हैं। इसमें लौकिक और अलौकिक दोनों ही रूप में बहन और भाई ईश्वर के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं। लौकिक रूप में बहनें भाई को राखी बांधती हैं और भाई बहनों को उपहार देते हैं। इस तरह यह भक्ति और वरदान का ही एक रूप है। जिसमें अलौकिक रूप से अग्नि देव दीये की जलती लौ में साक्षी बनकर उपस्थित होते हैं। 
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अक्षत, चंदन और सिंदूर भी अलौकिक रूप से देवी लक्ष्मी, सरस्वती और गणेश का आशीर्वाद बनकर इस त्योहार में भाई-बहन को आशीर्वाद देते हैं। इसलिए मान्यताएं कहती हैं कि जब आप सूतक में हों तब राखी का त्योहार नहीं मनाना चाहिए। लेकिन सूतक के दौरान भी आप राखी का त्योहार मनाना चाहें तो कुछ नियमों का पालन जरूर करें। इससे आप सूतक की मर्यादा का भी पालन कर पाएंगे और राखी का पर्व भी आपसे छूटेगा नहीं।
ऐसे मनाएं सूतक में राखी का त्योहार
सूतक के दौरान भाई-बहन अगर चाहें तो वह रक्षाबंधन का त्योहार मना सकते हैं। लेकिन इसमें सावधानी यह बरतें की, धार्मिक रीतियों को इसमें शामिल न करें। बहनें भाई की कलाई में राखी बांधें लेकिन तिलक और सिंदूर न लगाएं। भाई की आरती भी न करें। इस दौरान चरण स्पर्श करके प्रणाम भी नहीं किया जाता है, इसलिए हाथ जोड़कर ही प्रणाम करें। भाई या बहन जो भी छोटे हैं वह प्रणाम करें और बड़े आशीर्वाद दें।
रक्षाबंधन पर भद्राकाल का साया
वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार 11 अगस्त के दिन शाम के 5 बजकर 17 मिनट पर भद्रा पुंछ शुरू हो जाएगा जो शाम के 6 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगा। फिर 6 बजकर 18 मिनट से भद्रा मुख शुरू हो जाएगा जो रात्रि के 8 बजे तक रहेगा।

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