भाद्रपद मास की संकष्टी चतुर्थी आज है। शास्त्रों में संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकटों को हराने वाली चतुर्थी बताया गया है। गणपति भगवान की पूजा का विधान इस दिन होता है। बुद्धि, बल और विवेक का देवता गणेश जी को मानते हैं। हिंदू धर्म में कहा गया है कि भगवान गणेश जी पूजा किसी भी शुभ कार्य करने से पहले करते हैं। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक अन्य सभी देवी-देवताओं में गणपति को प्रथम पूजनीय कहते हैं। अपने भक्तों के सारे विघ्न भगवान गणेश जी हर लेते हैं। इसी वजह से उन्हें विघ्नहर्ता भी कहते हैं।
ये है संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
1. गणपति भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और गणेश जी की पूजा भी विधि पूर्वक करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अपने भक्तों की सभी मुरादें इस दिन पूजा-अर्चना से प्रसन्न होकर पूर्ण करते हैं।
2. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद लाल रंग के कपड़े पहन लें। फिर भगवान गणेश जी की पूजा से अपने दिन की शुरुआत करें।
3.पहले तो फूलों से अच्छी तरह बप्पा की मूर्ति को सजाएं। गणेश जी की पूजा तिल, गुड़, लड्डू, पुष्प, धुप और चन्दन से करें।
4. गणपति को रोली लगाएं और फूल-जल अर्पित करें। बप्पा को केला या नारियल प्रसाद के तौर पर चढ़ाएं।
5.तिल के लड्डू और मोदक का भोग गणपति को लगाएं।
6. गणपति की पूजा चांद के निकलने से पहले कर लें साथ ही संकष्टी व्रत कथा का पाठ जरूर पढ़ें।
7. फिर सभी में प्रसाद संकष्टी चतुर्थी की पूजा समाप्त होने के बाद बांट दें। उसके बाद अपना व्रत रात को चांद देखने के बाद खोलें।
ये है संकष्टी चतुर्थी का महत्व
मान्यता के अनुसार घर से सारी नकारात्मक ऊर्जा गणपति की पूजा संकष्टी के दिन करने से दूर होती है। साथ ही घर भी पवित्र हो जाता है। कहते है कि घर में आ रही सारी विपदाओं को गणेश जी दूर करते हैं और भक्तों की अभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। चन्द्र दर्शन भी बेहद शुभ चतुर्थी के दिन होता है। सूर्योदय से प्रारम्भ ये व्रत होता है और चंद्र दर्शन के बाद संपन्न होता है। संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत पूरे साल में रखे जाते हैं।