भोपाल : मध्य प्रदेश में चौथी बार विधानसभा का चुनाव जीतकर सरकार कैसे बनाई जाए, इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सबको खुश करने के अभियान में जुट गए हैं। शिवराज ‘संतुष्टि फॉर्मूला’ के जरिए हर वर्ग की मांगें मानने में ज्यादा देरी नहीं कर रहे हैं, बल्कि कई नई घोषणाएं खुद किए जा रहे हैं। इससे सरकार पर कितना आर्थिक बोझ आएगा, किस वर्ग में नाराजी बढ़ेगी, इसकी भी उन्हें परवाह नहीं है।
राज्य के चार विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में मिली हार के बाद सरकार और संगठन के पास जमीनी स्तर से आ रही सूचनाएं माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ाने वाली हैं। किसान नाराज है तो संविदा कर्मचारी हड़ताल का रास्ता अपनाए हुए हैं। इतना ही नहीं, महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान और विद्यालयों के अतिथि शिक्षक सरकार के लिए नया सिरदर्द बनते जा रहे हैं। रोजगार के अवसर न बढ़ने से युवा और मजदूर वर्ग में खासी नाराजगी है।
लगभग एक वर्ष पहले मुख्यमंत्री शिवराज ने ऐलान किया था कि आरक्षित वर्गो के आरक्षण का लाभ कोई माई का लाल नहीं छीन सकता। इसके बाद से गैर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों में असंतोष बढ़ा, जो अब तक खत्म नहीं हो पाया है। इस असंतोष को दबाने के लिए सरकार को सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढ़ाने का फैसला लेना पड़ा है।
राज्य का व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाला, मंदसौर में किसानों पर गोली चालन, उपज का सही दाम न मिलना, खनन माफिया, महिला अपराध, कुपोषण, रोजगार का अभाव आदि ऐसे मसले है, जिसने सरकार की छवि को प्रभावित किया है। सरकार के माथे पर लगे धब्बों को धोने का शिवराज हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
महिलाओं की सुरक्षा का वादा करते हुए मासूम बच्च्यिों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा का प्रावधान करने का वादा किया। किसानों के लिए भावांतर योजना, गेहूं, धान आदि पर बोनस, 200 रुपये में महिने भर बिजली जैसे अनेक फैसले लिए गए। स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में किए गए कार्यो का हर जगह ब्यौरा दे रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार साजी थॉमस का कहना है कि राज्य में शिवराज सिंह चौहान की सरकार के पक्ष में पिछले चुनावों जैसा माहौल नहीं है। लगभग हर वर्ग में किसी न किसी कारण से नाराजगी है। सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ने से भले ही ढाई लाख कर्मचारी खुश हुए हों, मगर नाराज होने वाले युवाओं की संख्या एक करोड़ से ज्यादा है।
किसान, पाटीदार नाराज हैं। इसके साथ ही केंद्र सरकार के फैसलों से भी प्रदेशवासी खुश नहीं हैं। दूसरी ओर कांग्रेस युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे चेहरे को सामने ला रही है। इन हालात में पिछले चुनावों के नतीजे दोहराना आसान नहीं होगा।
मुख्यमंत्री शिवराज इस बात को स्वीकारने को कतई तैयार नहीं हैं कि राज्य में सरकार के खिलाफमाहौल (एंटी इन्कम्बेंसी) है। वे कहते हैं कि जहां भी उनका जाना होता है, वहां लोगों का भरपूर प्यार मिलता है। सरकार हर वर्ग के कल्याण के लिए योजनाएं चला रही हैं। जिन स्थानों पर उपचुनाव में भाजपा हारी है, वो कांग्रेस के गढ़ हैं, उसके बावजूद हार का अंतर कम हुआ है।
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