समय के साथ-साथ शरीर भी बूढ़ा हो जाता है। एक दिन हम सभी को बूढ़ा होना है। क्योंकि यहां पर कुछ भी हमेशा के लिए नहीं है,मगर कुछ लोग हैं जो इस बात को समझने के लिए किसी भी तरह से राजी नहीं हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने बूढ़े मां-बाप को इस उम्र में घर से बाहर निकाल देते हैं या फिर उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं।
वैसे पता नहीं क्यों ऐसा होता है जिन मां-बाप ने उन्हें बचपन से लेकर अब तक पला है और खुद की ख्वाहिशों का गला घोटते हुए अपने बच्चे की हर एक मांग पूरी करी है वही बूढ़े होने के बाद उन पर क्यों बोझ बन जाते हैं। हाल ही में बांग्लादेश के एक फोटोग्राफर जिनका नाम जी.एम.बी आकाश है उन्होंने एक ऐसी ही मां की कहानी अपने इंस्टाग्राम पेज शेयर की है,जिसके बेटे ने अपनी ही मां को दर-दर की ठोकरे खाने के लिए घर से बाहर निकाल दिया है।
View this post on InstagramA post shared by GMB AKASH (@gmbakash) on
बुरी किस्मत मानते हैं विधवा को…
यह कहानी अल्पना रानी नाम की एक बूढ़ी दादी की है। उन्होंने बताया कि पति की मृत्यु हो जाने के बाद उनके बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया है। लोगों का मानना है कि एक विधवा की छाया उनके जीवन का खत्मा कर सकती है। दरअसल एक विधवा को बुरी किस्मत के रूप में देखा जाता है। यही वजह है कि उन्हें दूसरे लोगों ने भी घर में रहने नहीं दिया।
इस वजह से दादी को अपनी असली पहचान छुपाकर काम करना पड़ा। इतना ही नहीं दादी ने अपनी रोजी-रोटी के लिए बर्तन और कपड़े भी धोए। हालांकि अब वो एक मंदिर में भजन गाती हैं। जिससे उन्हें एक वक्त का खाना नसीब हो जाता है। वो कहती हैं मैं भीख मांगना शुरू कर सकती हूँ । लेकिन मुझे जिंदगी में महज थोड़ी सी इज्जत और सम्मान चाहिए।
नहीं होगा कोई रोने वाला
अब दादी ने मंदिर में रहना ही शुरू कर दिया। जहां पर रहते हुए उन्हें करीब 20 साल से ज्यादा हो गए हैं। उन्हें हर दिन मौत का इंतजार रहता है ताकि वह इस दर्दभरी हुई जिंदगी से मुक्ति पा सके। मगर उन्हें यह ख्याल भी सताता है कि जब वो मरेंगी तो रोने वाला कोई नहीं होगा। वो नम आंखों के साथ कहती हैं मैं यू हीं मर जाऊंगी बिना किसी के प्यार के।
दादी आगे कहती हैं मेरा बेटा जानता है कि मैं कहां रहती हूं,लेकिन वो इतने सालों में एक बार भी मेरे से मिलने के लिए नहीं आया। मुझे सिर्फ और सिर्फ अपने बेटे और परिवार के प्यार की भूख है और यही भूख मुझे उस खाने की भूख से भी ज्यादा दर्द देती है जिसे मैं रोज कहीं न कहीं ढूढंती हूं।