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जन्माष्टमी के दिन इन 8 चीजों को कान्हा की पूजा में करें शामिल, सुख-समृद्धि की होगी प्राप्ति

जब भी भगवान कृष्‍ण का नाम लिया जाता है वैसे ही सबके मन में उनके बाल और युवावस्‍था की शरारतें याद आ जाती हैं। भगवान कृष्‍ण के मस्तक पर सुंदर

जब भी भगवान कृष्‍ण का नाम लिया जाता है वैसे ही सबके मन में उनके बाल और युवावस्‍था की शरारतें याद आ जाती हैं। भगवान कृष्‍ण के मस्तक पर सुंदर सा मोरपंख और हाथों में बांसुरी ऐसा लगता है भगवान अपने भक्तों को स्वंय दर्शन देने आ गए हैं। जन्माष्टमी का त्योहार आ रहा है। भारत में जन्माष्टमी का त्योहार बहुत ही उत्साह से मनाया जाता है। भगवान कृष्‍ण का श्रृंगार इस दिन बहुत संदर होता है। 
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भगवान कृष्‍ण का श्रृंगार मोर पंख और बांसुरी के अलावा कई वस्तुएं से किया जाता है जो उनकी पूजा में शामिल होती हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्‍ण के श्रृंगार में उन 8 चीजों को शामिल करना बहुत आवश्यक होता है उससे वह प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। चलिए जानते हैं उन 8 वस्तुओं के बारे में –
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1. मोरपंख 
शास्‍त्रों में कहा गया है कि जब भी राधा रानी से मिलने भगवान श्री कृष्‍ण उनसे मिलने जाते थे तो उन्हें वह बांसुरी की धुन सुनाते थे जिसपर राधा रानी नाच उठती थीं। इतना ही नहीं उनके महल में कई सारे मोर भी थे जो उनके साथ नाचते थे। 
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ऐसे ही एक दिन राधा रानी के साथ मोर नाच रहे थे तभी किसी मोर का पंख जमीन पर गिर गया जिसे भगवान कृष्‍ण ने उठाकर अपने माथे पर लगा लिया। ऐसा माना गया है कि जो मोर पंख भगवान कृष्‍ण के माथे पर हैं वह राधा रानी के प्रेम की निशानी है। यही वजह है कि जन्माष्टमी पर श्री कृष्‍ण के श्रृगांर में मोर पंख का इस्तेमाल किया जाता है।
2. मोर मुकुट

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शास्‍त्रों के अनुसार कालसर्प योग भगवान कृष्‍ण की कुंडली में था जिसकी वजह से वह हमेशा मोर का पंख अपने मुकुट पर लगाते थे। बता दें कि भीषण शत्रुता मोर और सर्प में मानी जाती है। मुकुट पर मोर का पंख लगाने से कालसर्प योग का दोष कम रहाता है। मोर मुकुट भगवान कृष्‍ण को पहनाने से कालसर्प का दोष दूर रहता है। 
3. बांसुरी की मधुर तान 

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भगवान श्री कृष्‍ण को हमेशा उनकी बांसुरी से जानना जाता है। जब भी श्री कृष्‍ण अपनी बांसुरी बजाते थे तो सारी गोपियां उनकी मधुर धुन सुनकर उनके पास आ जाती थीं। श्री कृष्‍ण की बांसुरी प्रेम और आनंद का प्रतीक है। गोपियों के साथ बांसुरी बजाकर श्री कृष्‍ण रास रचाते थे और प्रेम का संचार पूरी सृष्टि में पहुंचाते थे। गृहस्‍थी में प्रेम और आनंद लाने के लिए हमेशा जन्माष्टमी की पूजा में बांसुरी को श्रृंगार में जरूर शामिल करना चाहिए। 
4. माखन-मिसरी 

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हम सब जानते हैं कि माखन श्री कृष्‍ण को कितना पंसद था। ऐसा कहा जाता है कि जब रात को श्री कृष्‍ण का जन्म हुआ था उस समय नंद गांव की गोपियों के सपने में कान्हा आए थे और उनसे माखन मांग रहे थे। श्री कृष्‍ण को माखन बहुत पसंद था वह गोपियों की मटकियों से बचपन में माखन चुराते थे और खा लेते थे। इसी वजह से उनको माखनचोर भी बुलाते हैं। जन्माष्टमी की पूजा में माखन-मिसरी को जरूर शामिल करना चाहिए ऐसा करने से जीवन में आरोग्य की प्राप्ति होती है। 
5. झूला या पालना

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जन्माष्टमी पर बालगोपाल को झूले में झुलाने की परंपरा बहुत पुरानी है। उसी तरह से बालगोपाल को झूलाया जाता है जैसे बच्चे को उसके जन्म के बाद झुलाया जाता है। इसी तरह से अपने प्रभुु के बाल रूप को भक्तजन पालने में झुलाते हैं। 
6. नए वस्‍त्र 

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भगवान के बाल रूप को जन्म के समय पंचामृत से स्नान किया जाता है उसके बाद उन्हें नए वस्‍त्र पहनाएं जाते हैं। नए कपड़े हमेशा पीले रंग के होने चाहिए। आप भी जन्म के समय भगवान को स्नान करने के बाद नए पीले कपड़े ही पहनाएं। 
7. अतिप्रिय है गाय

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गोलोक भगवान कृष्‍ण का निवास माना जाता है। भगवान की सहचर गाय हैं। ऐसा कहा जाता है कि पूजा में भगवान श्री कृष्‍ण के सज्ञथ बछड़े और गाय की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्िध आती है। धर्म का प्रतीक पुराणों में गाय को माना गया है। 
8. गीता की पोथी

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महाभारत के युद्ध के समय अपने प्रिय सखा और पांडवों में श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन को भगवान कृष्‍ण ने गीता का उपदेश दिया था। मोह से निकलकर गीता संसार को देखने का मार्ग अच्छे से दिखाती है। गीता को श्री कृष्‍ण की वाणी के रूप में भी जाना जाता है। गीता मनुष्य को मुक्ति का मार्ग और कर्म पथ पर चलने का ज्ञान देती है। इसलिए कृष्‍ण की पूजा में गीता की पोथी को जरूर रखें। 

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