अब दुनिया आधुनिक हो गई है और इस आधुनिकता की धुंध में कुछ भी साफ-साफ नहीं दिखाई देता है। समाज में भी धर्र्म को पाखंड करने का एक चलन भी बन चुका है और जिससे सब अनदेखा करने लगे हैं। लेकिन समाजिक परिवेश बदलने की बात को बहुत साल पहले ही पुराणों और ग्रंथों में बता दी गई हैं।
कई ऐसी भविष्यवाणियां जो इनमें बताई गई थी उसमें से कुछ सही साबित हो गईं हैं तो वहीं कुछ के सही साबित होने के संकेत मिल चुके हैं। आज हम आपको उन्हीं कुछ बातों के बारे में बताएंगे।
विष्णु पुराण में कहा गया था उद्योगों का बोलबाला होगा
विष्णु पुराण में कहा गया था कि कलयुग के समय मशीनरी और उद्योगों का ही बोलबाला होना है। अब आप आज के समय को देखकर यह तो हम सब समझ ही सकते हैं कि क्या सच है और नहीं।
विष्णु पुराण में कहा गया था विशेष ध्यान होगा केश सज्जा पर
ऐसा कहा गया था कि कलयुग में केश सज्जा यानी बालों को संवारने पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। अब इस बात पर आपको कुछ कहने की आवश्यकता है। आज के युग में मार्केट में जितने भी हेयर ट्रीटमेंट हैं उन्हें देखकर यह बात सच साबित होती है।
यह कहा गया था आयु के संबंध में
विष्णु पुराण में कहा गया है कि मनुष्य की उम्र धीरे-धीरे कम हो जाएगी और आखिरी में यह महज 20 साल ही रह जाएगी। आज कल छोटे बच्चों में ऐसी गंभीर बीमारियां हो रही हैं और क्या यह सब घटती हुई उम्र की तरफ तो ही इशारा नहीं कर रहे।
रामचरितमानस: इसके बारे में अब जरा जान लीजिए
तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में कई चौपाइयां बताई हुई हैं जो सच भी हो रही हैं। पहले आप इस चौपाई को पढि़ए-
मारग सोई जा कहुं जोई भावा। पंडित सोर्ई जो गाल बजावा।।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुं संत कहइ सब कोई॥
अर्थात- जिसे जो अच्छा लग जाए, वही उसके लिए मार्ग है। जो बिना सिर-पैर की बड़ी-बड़ी बातें करेगा, वही पंडित कहलाएगा। जो पाखंड रचेगा उसी को सब संत कहेंगे।
रामचरितमानत: कलयुग के साधू-सन्यासी ऐसे होंगे
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।
जाकें नख अरु जटा बिसाला, सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला।।
अर्थात- जिनका आचरण ही सही नहीं होगा, जो शास्त्रों और धर्म का मार्ग छोड़ देगें, कलियुग में वही ज्ञानी कहे जाएंगे। बड़े नाखून और लंबी जटाओंवाले ही बड़े तपस्वी कहे जाएंगे।
लोग अनुसरण करेंगे इन्हें ही पूजनीय मानकर
असुभ बेष भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिं।।
अर्थात- जो लोग असभ्य कपड़े पहनेंगे, खाने योग्य और न खाने योग्य सभी कुछ खाएंगे, ऐसे लोग ही प्रसिद्धि पाएंगे और इन्हें ही पूजनीय मानकर लोग अनुसरण करेंगे।
अभाव ग्रस्त होंगे गृहस्थ जीवन जीनेवाले
बहु दाम संवाहरिं धाम जती। बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती।
तपसी धनवंत दरिद्र गृही। कलि कौतुक तात न जात कही।।
अर्थात- सन्यासियों के धाम बहुत बड़े और साधन संपन्न होंगे। उनमें विषयों को लेकर आसक्ति रहेगी, वैराग्य का भाव नहीं होगा। गृहस्थ जीवन जीनेवाले अभाव ग्रस्त होंगे और विचार हीनता चरम पर होगी। लोग बड़े-छोटे का लिहाज नहीं करेंगे।