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दुनिया की सबसे पुरानी बांसुरी आई हाथ, 12000 साल पहले हड्ड‍ियों द्वारा किया जाता था निर्माण!

संगीत और संगीत से जुडी चीज़ो से आमुमन सभी को प्यार होता हैं लेकिन एक गीतकार को उससे कुछ अधिक ही प्रेम रहता हैं जैसे भगवन श्री कृष्ण को था अपनी बांसुरी से लेकिन क्या आप जानते हैं लकड़ी की वही बांसुरी पहले कैसे होती थी या किस्से बना करती थी।

म्यूजिक, डांस और ना जाने कितनी कलाओ का आज समस्त संसार में मान्यता मिलती हैं जहा आज लोग अपनी कला के दम पर देश विदेश में जाने जाते हैं वही क्या आप जानते हैं कि पहले के समय में इसका क्या महत्व था। बांसुरी का जब भी जिक्र आता है तो भगवान श्रीकृष्‍ण याद आते हैं। क्‍योंकि उनकी बांसुरी की गोपियां ही नहीं, पूरी दुनिया मुरीद है। लेकिन इजराइल के पुरातत्‍वविदों को अब एक ऐसी बांसुरी मिली है, जो 12000 साल पुरानी है। इसे दुनिया की सबसे पुरानी बांसुरी भी बताया जा रहा है। आप जानकर हैरान होंगे कि यहां कोई एक या दो नहीं बल्‍क‍ि बांसुरी पूरा बंडल है, जिसे देखकर साइंटिस्‍ट भी चक‍ित हैं कि आख‍िर इतनी पुरानी बांसुरी इतनी सुरक्ष‍ित कैसे है।
दरअसल, इजराइल में आयनन ऐन मल्लाह (Eynan-Mallaha)नामक जगह है, जहां बीते 30 सालों से खुदाई चल रही है। इसे ऐन मल्लाह (Ain Mallaha)के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां नाटुफ़ियन की बस्‍ती थी। इन्‍हें श‍िकार‍ी भी माना जाता है। 1950 के दशक में इस जगह की तलाश की गई थी, लेकिन वर्षों तक इसकी गंभीरता से खुदाई नहीं हुई। पिछले साल पुरातत्‍वव‍िद जब इस जगह की खाक छान रहे थे तभी 1100 पक्ष‍ियों की हड्ड‍ियों के भंडार के बीच बिखरी हुई बांसुरी नजर आई। पता चला कि इन्‍हें समुद्र में रहने वाले छोटे पक्ष‍ियों की हड्ड‍ियों से बनाया गया था। इनमें से सिर्फ एक बांसुरी ही पूरी तरह बनकर तैयार थी। इसकी लंबाई 2.6 इंच यानी 65 मिलीमीटर बताई गई है।
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सबसे छोटे ध्वन‍ि उपकरणों में एक हैं बांसुरी 
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साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में 9 जून को पब्लिश रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है। रिसर्च के लेखक और यरुशलम में फ्रेंच रिसर्च सेंटर में पुरातत्व के पोस्टडॉक्टोरल फेलो लॉरेंट डेविन ने इस बारे में लाइव साइंस से बात की। उन्‍होंने बताया कि यह बांसुरी प्रागैत‍िहास‍िक काल के आज तक ज्ञात सबसे छोटे ध्‍वन‍ि उपकरणों में से एक है। गेरू लगाने की वजह से इसका रंग लाल है। हमें लगता है कि तब लोग एक तार से इसे बांधकर रखते थे और गले में पहन लिया करते थे। जब इसे बजाया गया तो यूरेशियन स्पैरोहॉक्स (Accipiter nisus) और कॉमन केस्ट्रेल (Falco tinnunculus)जैसे तेज आवाज आई।
नैचुफियंस पक्ष‍ियों से करते थे कन्वर्सेशन 
डॉक्‍टर लॉरेंट डेविन ने कहा, नाटुफियंस ने उन छोटी हड्डियों को इसल‍िए चुना क्योंकि वे बाज की आवाज की नकल करने के लिए इस तरह की तेज आवाज चाहते थे। यह ध्‍वन‍ि के प्रत‍ि उनकी समझ को दिखाता है। शायद वे यह जानते थे कि बाज से निपटने के लिए या उसे बुलाने के लिए तेज ध्‍वन‍ि न‍िकालना जरूरी था। डेविन ने कहा, हमने कंप्‍यूटर सॉफ्टवेयर का उपयोग करके इसकी प्रत‍िकृत‍ि बनाई और जब मैंने इसे पहली बार बजाया और 12,000 साल पहले नैटुफियंस द्वारा बनाई गई आवाज सुनी, तो यह बहुत ही मार्मिक था। इससे लगता है कि नैचुफियंस ने शिकार करते समय या पक्षियों के साथ संवाद करने के लिए एयरोफोन का इस्तेमाल किया था। 

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