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कभी हॉकी के पर्याय रहे स्वर्ण पदक को मिला नया मुकाम, अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा ने बदला खेल का इतिहास

भारत के लिये लंबे समय तक ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक का मतलब पुरुष हॉकी टीम रही, लेकिन पहले अभिनव बिंद्रा और अब नीरज चोपड़ा ने अपने प्रदर्शन से खेल इतिहास में नये अध्याय जोड़ने के लिये तैयार हैं।

भारत के लिये लंबे समय तक ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक का मतलब पुरुष हॉकी टीम रही, लेकिन पहले अभिनव बिंद्रा और अब नीरज चोपड़ा ने अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया कि भारतीय खिलाड़ी देश के खेल इतिहास में नये अध्याय जोड़ने के लिये तैयार हैं। चोपड़ा ने तोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक की स्पर्धा में 87.58 मीटर भाला फेंककर स्वर्ण पदक जीता जो कि इन खेलों की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में देश का पहला पदक भी है। 
यह भारत का ओलंपिक खेलों में पिछले 100 वर्षों से भी अधिक समय में 10वां स्वर्ण पदक है और इनमें से आठ सोने के तमगे पुरुष हॉकी टीम ने जीते हैं। यदि नार्मन प्रिचार्ड के पेरिस ओलंपिक 1900 में जीते गये दो रजत पदक को हटा दिया जाए तो पिछले 100 वर्षों में भारत ने ओलंपिक में 10 स्वर्ण, सात रजत और 16 कांस्य पदक सहित 33 पदक जीते हैं। इस बीच छह ओलंपिक ऐसे भी रहे जिनमें टीम एक भी पदक नहीं जीत पायी। तोक्यो खेलों में एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य सहित सात पदक जीतना भारत का नया रिकॉर्ड है।
भारत ने ओलंपिक खेलों में आधिकारिक तौर पर पहली बार एंटवर्प ओलंपिक 1920 में भाग लिया था। तब से एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भारत ने लगभग 180 खिलाड़ी ओलंपिक में भेजे लेकिन परिणाम ‘सिफर’ ही रहा था। और अब चोपड़ा ने उस स्पर्धा (भाला फेंक) में स्वर्ण पदक जीता जिसमें इससे पहले भारत के केवल दो एथलीटों गुरतेज सिंह (1984) और जगदीश बिश्नोई (2000) ने हिस्सा लिया था।
ओलंपिक में भारत की स्वर्णिम यात्रा की शुरुआत 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक से हुई जब भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार इन खेलों में हिस्सा लिया। इसके बाद भारत ने लगातार छह ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर हॉकी में अपना दबदबा बनाया। एम्सटर्डम ओलंपिक में भारत ने फाइनल में नीदरलैंड को 3-0 से हराया था तो इसके चार साल बाद लास एंजिल्स में केवल तीन टीमों ने हिस्सा लिया था। ध्यानचंद की अगुवाई में भारत ने अपने दोनों मैच बड़े अंतर से जीतकर स्वर्ण पदक हासिल किया था।
बर्लिन ओलंपिक में तो हिटलर भी भारतीयों की हॉकी के प्रशंसक बन गये थे। भारत ने तब जर्मनी को फाइनल में 8-1 से हराकर खिताबी हैट्रिक बनायी। लंदन ओलंपिक 1948 में कोई टीम भारत के सामने नहीं टिक पायी। भारत ने मेजबान ग्रेट ब्रिटेन को आसानी से 4-0 से पराजित करके चौथा स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद हेलसिंकी 1952 और मेलबर्न 1956 में यही कहानी दोहरायी गयी जहां भारत ने फाइनल में क्रमश: नीदरलैंड को 6-1 और पाकिस्तान को संघर्षपूर्ण मैच में 1-0 से हराया था।
भारत को अपने अगले स्वर्ण पदक के लिये आठ साल का इंतजार करना पड़ा था। यह सोने का तमगा उसने तोक्यो ओलंपिक 1964 में पुरुष हॉकी में ही पाकिस्तान को 1-0 से हराकर जीता था। अगले तीन ओलंपिक में भारतीय हॉकी सोने की चमक नहीं बिखेर पायी और भारत के नाम के आगे स्वर्ण पदक दर्ज नहीं था।
फिर आया मास्को ओलंपिक जिसमें पुरुष हॉकी में छह टीमों ने हिस्सा लिया। राउंड रोबिन आधार पर शीर्ष पर रहने वाली दो टीमों के बीच फाइनल हुआ। भारत ने फाइनल में स्पेन को 4-3 से हराकर फिर से स्वर्ण गाथा लिखी। लेकिन इसके बाद अगले तीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक तो दूर भारत किसी भी खेल में कोई पदक हासिल नहीं कर पाया। अटलांटा ओलंपिक 1996 में ‘सिफर’ से निजात मिली लेकिन स्वर्ण पदक का इंतजार 28 वर्ष बाद 2008 में बिंद्रा ने जाकर खत्म किया।
वह 11 अगस्त 2008 का दिन था जब बीजिंग शूटिंग रेंज में बिंद्रा ने स्वर्ण पदक पर निशाना साधकर भारतीय खेलों में नया इतिहास रचा था। वह भारत की तरफ से ओलंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने थे। बिंद्रा ने क्वालीफाईंग राउंड में 596 अंक के साथ चौथे स्थान पर रहकर फाइनल में जगह बनायी। फाइनल में उन्होंने 104.5 स्कोर बनाया और कुल 700.5 के स्कोर के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। और अब ठीक 13 साल बाद नीरज ने सात अगस्त 2021 को भारतीय खेलों के इतिहास में हमेशा के लिये यादगार बना दिया।

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