ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान ग्रेग चैपल ने एक बार फिर बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली के खिलाफ गलत बयान बाजी की है। लेकिन भारतीय टीम की सूरत बदलने का श्रेय आज तक भी सिर्फ और सिर्फ पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को ही दिया जाता है। मगर जब ग्रैग चैपल भारतीय टीम के कोच बने तो गांगुली के साथ उनकी कहा सुनी खूब चर्चा में रही। यही नहीं चैपल के कोच बनने के बाद गांगुली को कप्तानी से तो किनारा करना ही पड़ा साथ ही वह करीब डेढ़ साल तक टीम इंडिया से बाहर भी रहे।
हाल ही में चैपल ने फिर से अपने कोचिंग काल के पलों को याद किया है साथ ही उन्होंने गांगुली के साथ अपने विवादों को एक बार फिर हवा दी है। जी हां चैपल ने गांगुली पर फिर से गंभीर आरोप लगाते हुए कहा वह बतौर खिलाड़ी अपनी क्रिकेट में सुधार नहीं करना चाहते थे और टीम का कप्तान बने रहकर चीजों को काबू में रखना चाहते थे।
बता दें कि चैपल को 2007 वर्ल्ड कप को ध्यान में रखकर भारतीय टीम का कोच नियुक्त किया गया था और गांगुली के बाद राहुल द्रविड़ ने टीम इंडिया की कमान संभाली और वह करीब दो साल तक भारतीय टीम के कोच रहे। हाल में अब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के एक पोडकास्ट कार्यक्रम में अपने क्रिकेट जीवन की कहानियों पर चर्चा कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने भारतीय क्रिकेट के कोच बनने पर भी बात की।
इस पोडकास्ट कार्यक्रम में चैपल ने राहुल द्रविड़ पर आरोप लगाते हुए कहा , गांगुली के कप्तान रहते हुए सिर्फ परेशानी ही थी ,एक तो वह मेहनत नहीं करना चाहते थे साथ ही क्रिकेट में भी सुधार करने का उनका कोई मन नहीं था। वो तो बस टीम में कप्तान बनकर रहना चाहते थे ताकि वह चीजों पर अपना नियंत्रण रख सकें।
72 साल के पूर्व कंगारू क्रिकेटर कहा भारत में वह दो साल खूब चुनौतीपूर्ण थे और वहां हर मोर्चे पर चुनौतियां थीं। उनकी आशाएं बेतुकी थीं। भारतीय लोग क्रिकेट के प्रति कट्टर हैं। उन्होंने यहां यह भी स्वीकार की किया वह भारत के कोच इसलिए ही बने थे क्योंकि गांगुली ने उनसे ऐसा आग्रह किया था।
चैपल ने आगे कहा, साल 2007 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम भले ही टूर्नामेंट में फ्लॉप साबित हुई थी और टूर्नामेंट के पहले ही राउंड में वह बाहर का रास्ता देख लिया हो , लेकिन तब भी बीसीसीआई ने उन्हें टीम इंडिया की कोचिंग के लिए दोबारा ऑफर दिया था।
चैपल यही शांत नहीं बैठे उन्होंने आगे कहा, भारतीय टीम को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनाने में काफी मेहनत की थी लेकिन टीम के बाकी सीनियर खिलाड़ी ऐसा नहीं कर रहे थे। सौरव गांगुली के बाहर होने से वे बिल्कुल असुरक्षित महसूस कर रहे थे कि अगर गांगुली बाहर हो सकते हैं तो फिर टीम का कोई भी खिलाड़ी बाहर हो सकता है। वे ऐसा इसलिए सोचते थे क्योंकि उनमें से ज्यादा तक क्रिकेट करियर अपने अंतिम पड़ाव पर था।