नई दिल्ली : इसे भारतीय फुटबॉल का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि उसके पास ऐसे ग्यारह खिलाडी भी नहीं हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कहा जा सके। भारतीय टीम का कप्तान सुनील छेत्री ही अकेला ऐसा खिलाडी है जिसे एशिया महाद्वीप के श्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार किया जा सकता है। नेपाली मूल का यह भारतीय खिलाडी दिल्ली के आर्मी पब्लिक स्कूल और तत्पश्चात ममता मॉडर्न स्कूल से होता हुआ भारतीय राष्ट्रीय टीम का कप्तान बना है। तारीफ़ कि बात यह है कि सुनील ने खेल का हुनर अपनी मां से सीखा जोकि स्वयं नेपाल के लिए फुटबॉल खेली थीं। भले ही सुनील आज देश का श्रेष्ठ खिलाडी है, उसे देश विदेश में जाना पहचाना जाता है।
लेकिन उसे यह कमी हमेशा खलती आई है कि भारत उसके रहते विश्व कप नहीं खेल पाया। वह मानता है कि भारतीय फुटबॉल शेष विश्व कि तुलना में बहुत पीछे चल रही है। लेकिन एक दिन भारतीय टीम जरूर यह सम्मान हासिल करेगी,ऐसा विश्वास उसने पंजाब केसरी के साथ बातचीत में व्यक्त किया। बीस साल पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि पांच फुटा यह खिलाडी एक दिन भारत के सर्वकालीन श्रेष्ठ फुटबॉल खिलाडियों में स्थान बना लेगा।
उसने 100 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में 62 गोल जमा कर भारत के लिए सर्वाधिक गोल दागने का सम्मान हासिल कर लिया है। तब वह राजधानी के स्कूली आयोजनों में अपनी ड्रिब्लिंग और चपलता से फुटबॉल प्रेमियों का मन मोह रहा था। लेकिन एक बार जब उसे एशियन स्कूली टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिला तो फिर कभी मुड़ कर नहीं देखा। वह देश के लगभग सभी बड़े फुटबॉल क्लबों के लिए खेला है। देश विदेश में जाना पहचाना जाता है क्योंकि वह गोल जमाने कि कला में मेसी ,नेमार ,रोनाल्डो और सलाह जैसा उस्ताद है।
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(राजेंद्र सजवान)