नई दिल्ली : कुछ साल पहले तक भारतीय फुटबॉल का नाम सुनते ही विदेशी नाक-भौं सिकोड लिया करते थे। एक दशक पहले तक भारत आने वाले कोच और खिलाड़ी कहते थे कि भारतीय फुटबॉल शेष विश्व की तुलना में सौ साल पीछे चल रही है। आज वही लोग और यूरोप से आने वाले अन्य जानकार कहते हैं कि भारत फुटबॉल का सोया शेर है। उनके देखा देखी भारतीय फुटबॉल प्रेमियों ने अपने खिलाड़ियों को ब्लू टाइगर कहना शुरू कर दिया है।
यह हाल तब है जब भारतीय football एशिया के पहले बीस देशों में भी स्थान नहीं बना पाई है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? क्या भारतीय फुटबॉल में कोई बदलाव आया है? यदि कुछ भी नहीं बदला तो दुनिया भर के फुटबॉल राष्ट्र और उनके नामी क्लब भारत मेें धंधा क्यों करना चाहते हैं? क्यों उन्हें भारतीय फुटबॉल से प्यार हो गया है? इंग्लैंड, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों का भारतीय football के प्रति मोह हैरान करने वाला ज़रूर है पर इसके पीछे एक बड़ा बाज़ार छुपा है।
यूरोप के देश समझ गये हैं कि भारत में फुटबॉल के लिए माहौल बन रहा है। हज़ारों-लाखों बच्चे और युवा खिलाड़ियों के नायक या तो सचिन, धोनी, विराट जैसे क्रिकेट स्टार हैं या उन्हें मेस्सी, रोनाल्डो, नेमार जैसे महान फुटबॉल खिलाड़ी रोमांचित करते हैं। अब चूंकि भारत में football के लिए सोच बदल रही है इसलिए विदेशियों ने और ख़ासकर, यूरोप के देशों ने एशिया और अफ्रीका के पचास देशों की बजाय भारतीय फुटबॉल में निवेश करना बेहतर समझा है।
लगभग डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश में यूरोपीय क्लबों के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध है। ऐसे मे थोड़ा बहुत झूठ बोल कर काम चल जाए तो कोई बुराई नहीं है। विदेशी कोच और खिलाड़ी रोनाल्डो और मेस्सी के साथ छेत्री का नाम जोड़ कर भावनात्मक खेल भी खेलते हैं। बेशक छेत्री भारत के श्रेष्ठतम खिलाड़ियों में स्थान पाने के हकदार हैं। लेकिन विदेशियों का भारतीय फुटबॉल के प्रति मोह शक तो पैदा करता ही है।
(राजेंद्र सजवान)