नई दिल्ली : जो लोग यह सोचते हैंvकि इंडियन सुपर लीग के आयोजन से भारत इस खेल मे दुनिया की बड़ी ताक़त बन जाएगा या जो यह मानते हैं कि अंडर 17 वर्ल्ड कप के आयोजन के बादसे देश मे फुटबॉल के लिए माहौल बन सकता है तो वह गलत नहीं सोचते। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि ऐसी सोच रखने वाले कितने हैं और उनके स्वार्थ किस हद तक जुड़े हैं। कुछ लोगों को बुरा ज़रूर लगेगा लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय फुटबॉल पिछले चालीस सालों से झूठे दावों और खोखली उम्मीदों पर जीती आ रही है और आगे भी कुछ होने वाला नहीं है। ऐसा खेल जानकारों का मानना है।
देखा जाए तो 1950 से 1970 के बीच हमारी फुटबॉल अपने श्रेष्ठ पर थी। ओलंपिक खेलना, एशियाड में दो बार खिताब जीतना खेल की प्रगति दर्शाते थे। अब वहां पहुंचने के लिए हमे बीस से तीस साल लग सकते हैं। दुनिया के फुटबॉल एक्सपर्ट्स और पूर्व भारतीय खिलाड़ी ऐसा मानते हैं। लेकिन दावा किया जा रहा है कि भारत 2030 से पहले वर्ल्ड कप खलने में कामयाब होगा। हालांकि किसी के पास जवाब नहीं है। अर्थात सब कुछ झूठ और दावों पर चल रहा है। कभी भारत एशिया में एक बड़ी ताकत माना जाता था। आज आलम यह है कि पिद्दी सा देश म्यांमार भारत को उसी के मैदान मे पाठ पढ़ा देता है। नारे बुलंद किए जा रहे हैं कि हम पिछले तेरह मैचों से अजेय हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने यह जानने की कोशिश की है हम किन फिसड्डी देशों सेखेल रहे हैं।
खोखले दावे करने वालों में फेडरेशन, आईएसएएल के आयोजक प्रायोजक और विदेशी .स्वदेशी कंपनियां और क्लब भी शामिल हैं । इन सबका मकसद तमाशा जोड़ना और खाना कमाना देश के फुटबॉल प्रेमियों को गुमराह करना है। बालीवुड, औद्योगिक घराने और अन्य अवसरवादियों की चाल का ही नतीजा है की देश के कई बड़े टूर्नामेंट आई लीग, फ़ेडेरेशन कप और तमाम आयोजन बंद हो गये हैं या मर-मर कर जी रहे हैं। इतना तय है की जब तक देश मे ग्रास रुट पर प्रयास नहीं किए जाते वर्ल्ड कप खेलने का सपना अगले पचास साल में भी पूरा नहीं होगा।