विश्व चैंपियनशिप में भारतीय पहलवानों के बेहद खराब प्रदर्शन को लेकर मंत्रणा शुरू हो गई है। पता नहीं खेल मंत्रालय और खेल प्राधिकरण क्या सोच रहे हैं किंतु कुश्ती फैडरेशन के बड़े चिंतित जरूर हैं। हालांकि फैडरेशन बहाना बना रही है कि तैयारी का पर्याप्त मौका नहीं मिला, लेकिन ऐसी सफाई बिल्कुल नहीं चलने वाली। दोष हर हाल में पहलवानों और फैडरेशन का है ऐसा ज्यादातर मानते हैं।
उधर देश के कुश्ती पंडित,कोच और अखाड़ों के गुरु खलीफा कह रहे हैं कि भारतीय कुश्ती में अब विराम आ गया है। कुछ का यह भी कहना है कि सब जूनियर और जूनियर वर्गों से अच्छी फीड बैक नहीं मिल पा रही है। एक वर्ग ऐसा भी है जिसे लगता है कि पहलवानों पर अंकुश नहीं रहा। वह मनमर्जी कर रहे हैं। खास कर बड़े नाम वाले किसी को भी कुछ नहीं समझते। टीम से जुड़े कुछ कोच तो यहां तक कहते हैं कि पहलवान जरूरत से ज्यादा अनुशासनहीन हो गये हैं। उन्हें ट्रेनिंग की बजाय मौज मस्ती ज्यादा पसंद है।
खैर , आरोप -प्रत्यारोपों से हट कर सोचें तो कुश्ती प्रेमी ,पूर्व पहलवान और खेल की समझ रखने वालों का मानना है कि देश मंे अखाड़ा संस्कृति संकट में है। कई अखाड़े साधन सुविधाओं के अभाव मंे बंद होने की कगार पर पहुंच गये हैं या जैसे-तैसे चल रहे हैं। ऐसे लोगों की माने तो देश मंे कुश्ती अकादमियों का अभाव है।
अकादमियां चलाने के लिए प्रोत्साहन का अभाव है तो जो अखाड़े चल रहे हैं उन पर सरकार और फैडरेशन का कतई ध्यान नहीं। दिल्ली का गुरु हनुमान बिड़ला व्यायामशाला,मास्टर चंदगी राम अखाड़ा , कैप्टन चांदरूप अखाड़ा,मुन्नी व्यायामशाला, जसराम अखाड़ा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, पंजाब, यूपी एमपी आदि प्रदेशों के अनेक अखाड़े पहचान खो रहे हैं। कुल मिला कर अखाड़ों को प्राथमिकता सभी की मांग है। सुशील, योगेश्वर, साक्षी सभी अखाड़ों से निकले हैं और आगे भी अखाड़े ही पदक दिलाएंगे।