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Vinesh Phogat: विनेश फोगाट ने पेरिस ओलंपिक 2024 के फाइनल में जगह बना ली है। विनेश ने 50 किलोग्राम भार वर्ग में सेमीफाइनल 5-0 से जीतकर फाइनल में जगह बनाई और इसके साथ ही मेडल पक्का कर लिया। इस तरह विनेश ओलंपिक में रेसलिंग के फाइनल में पहुंचने वाली देश की पहली महिला पहलवान भी बन गईं। विनेश ने सेमीफाइनल में क्यूबा की रेसलर गुजमन लोपेज को 5-0 से मात दी।
Highlights:
बता दें कि विनेश फोगाट ने 2016 में रियो डि जेनेरो के ओलंपकि में अपना डेब्यू किया था लेकिन तब पहले ही मैच में चोट के कारण उन्हें बाहर होना पड़ा था. इसके बाद टोक्यो ओलंपिक में उन्हें सेमीफाइनल से पहले ही शिकस्त मिल गई थी।
कुश्ती के मैट पर विनेश फोगाट के असाधारण प्रदर्शन ने पेरिस ओलंपिक में भारत की एक और स्वर्ण की उम्मीदों को जगा दिया । गत चैंपियन नीरज ने मंगलवार को यहां अपने पहले ही प्रयास में 89.34 मीटर के थ्रो के साथ पुरुष भाला फेंक स्पर्धा के फाइनल में प्रवेश किया जबकि महिला पहलवान विनेश (50 किग्रा) ने पहले दौर में अब तक अपराजेय मौजूदा चैम्पियन युई सुसाकी को हराकर बड़ा उलटफेर करने के बाद सेमीफाइनल में जगह बनाकर पदक की ओर मजबूत कदम बढ़ाए। टेबल टेनिस पुरूष वर्ग में भारत को हालांकि निराशा हाथ लगी ।
पेरिस में जहां एक तरफ विनेश फोगाट कुश्ती में अपना दमखम दिखा रही हैं, वहीं विनेश की जीत के लिए करनाल के कुश्ती खिलाड़ी भी उम्मीद लगाए बैठे हैं। करनाल के कर्ण स्टेडियम में कुश्ती खिलाड़ियों ने विनेश के लिए प्रार्थना की और उम्मीद जताई की विनेश दीदी गोल्ड मेडल जीतेंगी। विनेश ने प्री क्वार्टर फाइनल में जापान की रेसलर को मात दी। क्वार्टर फाइनल में यूक्रेन की रेसलर को हराया। अब सेमीफाइनल में क्यूबा की रेसलर के साथ मुकाबला होगा।बता दें कि फाइनल में विनेश फोगाट की टक्कर US रेसलर सारा से होगी
लेकिन पेरिस ओलंपिक खेलों से पहले का जीवन विनेश के लिए काफी कठिन था क्योंकि उनके हर कदम पर सवाल उठाए जाते थे और विवाद होता था क्योंकि वह शासन के खिलाफ खड़ी थीं और युवा महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न के लिए बृज भूषण शरण सिंह के विरोध में पहलवानों का समर्थन किया था। विनेश उन तीन ओलंपियनों में से एक थीं, जो कई युवा पहलवानों के साथ नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर बृज भूषण के खिलाफ महीनों तक विरोध प्रदर्शन में बैठी थीं, लेकिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें बलपूर्वक हटा दिया और हिरासत में ले लिया। विनेश के साथ-साथ साक्षी और बजरंग पुनिया को शासन के समर्थकों द्वारा अपमानित किया गया और दुर्व्यवहार किया गया और यहां तक कि उनके विरोध के हिस्से के रूप में उन्हें सरकार से मिले पुरस्कार भी लौटा दिए गए।