नई दिल्ली : जैसे-जैसे टोक्यो ओलंपिक नजदीक आ रहा है, विदेश दौरों के लिए कुख्यात राष्ट्रीय खेल संघों, भारतीय ओलंपिक संघ और खेल मंत्रालय एवं भारतीय खेल प्राधिकरण के अवसरवादियों ने अंगड़ाई लेनी शुरू कर दी है। गाहे बगाहे उन्होनें वही पुराना, बेसुरा और घिसा पिटा राग अलापना शुरु कर दिया है। अपने-अपने स्तर पर उन्होंने टोक्यो में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा जीते जाने वाले पदकों का हिसाब किताब लगाना प्रारम्भ कर दिया है।
इस खेल में जाने माने खेल पंडित, मीडिया का एक भटका हुआ वर्ग, न्यूज एजेंसियों के यस मैन और खेल संघों और खेल मंत्रालय के तथाकथित एक्सपर्ट बढ़चढ़ कर भागीदारी निभा रहे हैं। लेकिन जब देश का खेल सचिव कुर्सी संभालते ही दावा कर दे कि भारतीय खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक में 50 पदक जीत सकते हैं तो आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं है। लेकिन कुछ भी नया नहीं है। हर ओलंपिक से पहले ऐसा ही होता है। कारण, भारतीय खेलों के मठाधीस जानते हैं कि हमारे खिलाड़ी कितने पानी में हैं और उनमें पदक जीतने का कितना माद्दा है।
लेकिन यदि सच पहले ही बोल दिया जाए तो खेल मंत्रालय, आईओए और खेल संघों के मौका परस्त ओलंपिक का टिकट कैसे पा सकते हैं। नतीजन खिलाड़ियों के साथ साथ अधिकारी भी चोर दरवाजे से ओलंपिक, एशियाड और तमाम आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज करते आ रहे हैं। लंदन ओलंपिक में छह पदक जीतने के बाद तमाम जिम्मेदार इकाइयों, मीडिया हाउस और कार्पोरेट जगत नें रियो ओलंपिक में दस से बीस पदक जीतने का दावा ठोक दिया परंतु मिले सिर्फ दो। भला हो सिंधु और साक्षी का जिनके प्रदर्शन ने भारतीय प्रतिष्ठा को नंगा होने से बचा लिया।