सायना नेहवाल खेलते खेलते राजनीति में कूद पड़ी है। 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली सायना को आठ साल बाद 2020 के टोक्यो ओलंपिक में भी पदक की दावेदार के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन खेल की समझ और ओलंपिक के मायने समझने वाले इसलिए हैरान हैं क्योंकि सायना पिछले कुछ समय से टाप फार्म में नहीं चल रही है।
इसके मायने यह नहीं कि उसमें अब पदक जीतने की क़ाबलियत नहीं रही। दरअसल, उसकी स्थिति अब ऐसी है कि खिताब जीतना तो दूर ओलंपिक क्वालीफायर के बारे में भी शायद ही कोई सोच सकता है। जो खिलाड़ी लगातार नौ बड़े आयोजनों में पहले राउंड में हार कर बाहर हो जाए और जिसकी वर्तमान विश्व रैंकिंग 22 वें स्थान की हो तो उसे ओलंपिक खेलने का हक भी शायद ही मिल पाए।
नियमों के हिसाब से 16-16 पुरुष और महिला खिलाड़ी ओलंपिक में खेलेंगे| अर्थात सायना को आगामी कुछ आयोजनों में चमत्कारी प्रदर्शन करना होगा और कई बड़े नाम वाली लड़कियों को परास्त करना है। यह ना भूलें कि विश्व चैम्पियन और रियो ओलंपिक की रजत पदक विजेता सिंधु भी काफ़ी पिछड़ गई हैं| फिरभी छठे रैंकिंग की सिंधु को शायद ही कोई रोक पाए।
जहां तक सायना की बात है तो दलगत राजनीति में उतरने का उसका फैसला बताता है कि शायद वह यह मान बैठी कि उसके लिए अब मौके ज्यादा नहीं हैं और सही समय पर राजनीति का दामन थामना ही बेहतर रहेगा। डबल्स खिलाड़ी रही ज्वाला गुट्टा ने तो उसके फैसले पर तंज कसा है और यहां तक कह डाला 'बेवजह खेलना शुरू किया और बेवजह राजनीति ज्वाइन कर ली'। लेकिन सायना के पिता कहते हैं कि उनकी बेटी टोक्यो ओलंपिक में खेलेगी और पदक भी जीतेगी।
खैर कुछ एक महीनों में पता चल जाएगा कि सायना कब तक जारी रख पाएगी। लगातार हार का सिलसिला थम नहीं पा रहा। बेशक, वह अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्रहै। लेकिन उसकी ओलंपिक तैयारियों पर देश ने करोड़ों खर्च किये हैं। पहले शादी और फिर राजनीति में प्रवेश ने निश्चित तौर पर उसके ओलंपिक क्वालीफायर को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। उपर से खराब फार्म से भी जूझना पड़ रहा है। उसके प्रशंसक अब भी उम्मीद कर रहे हैं।
लेकिन भारतीय बैडमिंटन से जुड़े दिग्गज कह रहे हैं कि सायना को शायद पता चल गया है कि आगे की राह मुश्किल है और अब राजनीति में खेल से बेहतर मौके हैं। वरना एन ओलंपिक से पहले ऐसा कदम नहीं उठाती।