नई दिल्ली : भारत द्वारा वर्ल्ड कप हॉकी में मिली एकमात्र जीत के महानायकों में कप्तान अजितपाल सिंह और अशोक कुमार सबसे ज़्यादा लोकप्रिय रहे लेकिन एक खिलाड़ी यकायक उभर कर आया और आज तक हर किसी के दिल-दिमाग़ में बसा हुआ है। बेशक, वह असलम शेरख़ान हैं जिन्होने सेमीफाइनल में पेनल्टी कार्नर पर गोल जमा कर वाह वाह लूटी थी। असलम बेतूल से सांसद भी रहे हैं। अब उनकी राजनीति में रूचि नहीं रही और हॉकी में कोई पूछता नहीं।
हाल ही में एक साक्षात्कार के चलते उन्होने वर्तमान हॉकी टीम को वर्ल्ड कप के लिए शुभ कामना दी किंतु साथ ही कहा कि टीम को खिताब जीतने के लिए हट कर प्रदर्शन करना पड़ेगा। जैसा जकार्ता एशियाड मे खेले उस तरह के खेल से काम नहीं चलने वाला। उन्हें वर्तमान हॉकी टीम का कोई भी खिलाड़ी प्रभावित नहीं कर पाया। रक्षापंक्ति लचर है और पेनल्टी कार्नर पर गोल जमाने की कलाकारी भी कमजोर टीमों के विरुद्ध ही दिखाई पड़ती है। बड़े मैचों में हमारे तथाकथित एक्सपर्ट पता नहीं कहां गायब हो जाते हैं। फ़ॉरवर्ड लाइन में भी दम-खम की कमी साफ नज़र आती है। उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि आज के खिलाड़ी को सबकुछ मिल रहा है फिर भी वह कुछ खास नहीं कर पा रहा, जबकि उनके समय के खिलाड़ी सिर्फ़ पानी पीकर प्रतिद्वंदियों को पानी पिला पिला कर मारते थे।
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उन्हें सरकार द्वारा दी जा रही सरकारी सहायता, इनाम, लाखों के नकद पुरस्कार प्रभावी लगते हैं किंतु जैसे जैसे सुविधाएं बढ़ी हैं प्रदर्शन लगातार गिरा है। असलम इस स्थिति के लिए साई, हॉकी इंडिया और खिलाड़ियों को ज़िम्मेदार मानते हैं, जिनमे से कोई भी अपने काम को ईमानदारी से अंजाम नहीं दे रहा। हैरानी वाली बात यह है कि देश के दर्जनों ओलंपियन अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हैं पर उन्हें पूछा नहीं जाता। असलम को आज तक भारतीय हॉकी के आकाओं का कोचिंग सिस्टम समझ नहीं आया। वह खुल कर कहते हैं कि उन्हें जी हुजूर और तेल लगाने वाले कोच चाहिए जोकि पलटी खाने और आंसू बहाने की कला जानते हैं।
(राजेंद्र सजवान)