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हॉकी में गोल्ड से खुलेगा ओलंपिक द्वार

कोच, खिलाड़ी, और हॉकी इंडिया को अपनी टीमों पर पूरा भरोसा है तो इसलिए क्योंकि भारतीय हॉकी रैंकिंग के मामले में अन्य एशियाई देशों से कहीं आगे है।

नई दिल्ली : एशियाड में भारत की पदक तालिका में बढौतरी करने वाले खेलों में तथाकथित राष्ट्रीय खेल हॉकी का बड़ा योगदान रहा है और एक बार फिर से भारतीय टीमें कसौटी पर खरी उतरने के लिए तैयार हैं। कोच, खिलाड़ी, और हॉकी इंडिया को अपनी टीमों पर पूरा भरोसा है तो इसलिए क्योंकि भारतीय हॉकी रैंकिंग के मामले में अन्य एशियाई देशों से कहीं आगे है। उनके पास खिताबी जीत के साथ टोक्यो ओलंपिक 2020 का सीधा टिकट पाने का मौका है, जिसे कदापि चूकना नहीं चाहेंगे। लगभग सभी एशियाई खेलों में भारतीय हॉकी को पदक मिलते आए हैं लेकिन जहां तक बादशाहत की बात है तो भारत पुरुष और महिला दोनों वर्गों में नंबर एक पर नहीं रहा। पुरुष वर्ग में पाकिस्तान ने आठ अवसरों पर एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक जीते हैं तो महिलाओं में मात्र एक बार ही यह कामयाबी मिली है।

एशियाड में हॉकी का प्रवेश 1958 में हुआ था जिसमे पाकिस्तान चैम्पियन बना। भारत को पहली सफलता 1966 में मिली। फिर 32 साल बाद दूसरा खिताब 1998 में जबकि तीसरा खिताब 2014 में जीता। पाकिस्तान ने आठ खिताब जीत कर अपनी बादशाहत कायम की तो दक्षिण कोरिया ने भारत के बराबर तीन खिताब जीते हैं। जहां तक महिला हॉकी की बात है तो 1982 के दिल्ली एशियाड में जब भारतीय पुरुष टीम पाकिस्तान के हाथों 1-7 से परास्त हुई तो शिवाजी स्टेडियम पर महिलाओं ने दक्षिण कोरिया को बुरी तरह हरा कर पहली ख़िताबी जीत पाई। यह भारत की पहली और अब तक की आखरी जीत रही। महिला वर्ग में दक्षिण कोरिया और चीन ने क्रमश: पांच और तीन बार स्वर्ण पदक अर्जित किए हैं।

‘करो या मरो’ के मुकाबले में महिला हॉकी का सामना अमेरिका से

जकार्ता जाने वाली टीमों को इसलिए स्वर्ण पदक की दावेदार माना जा रहा है क्योंकि पिछले दो-तीन सालों में पुरुष और महिला टीम ने शानदार प्रदर्शन किया है। पुरुषों का चैम्पियंस ट्राफी में उपविजेता रहना और महिलाओं का एशिया कप जीतना अभूतपूर्व रहा। उन्हें पता है कि खिताबी जीत भारत को दोनों वर्गों में ओलंपिक प्रवेश दिलाएगी। सरदार सिंह और रानी रामपाल जैसे अनुभवी खिलाड़ी मानते हैं कि भारत के लिए स्वर्ण जीतने का सुनहरी मौका है। उनके अनुसार पेनल्टी कार्नर, फील्डगोल, स्पीड और स्टेमीना जैसे क्षेत्रों में भारतीय खिलाड़ी अन्य से कहीं बेहतर हैं। दोनों ही टीमों की तैयारी पूरी है। तारीफ की बात यह है कि खिलाडियों और कोचों का मनोबल सातवें आसमान पर है।

(राजेंद्र सजवान)

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