लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

खिलाड़ियों को तैयार करने वाले कोचों को सम्मान मिले

NULL

नई दिल्ली : यह तो वक्त ही बताएगा कि खेलो इंडिया की शुरुआत से इंडिया कितना और कैसे खेलता है किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन काबिले तारीफ़ है। देर से ही सही किसी प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने खेलों के महत्व को समझा है। हालांकि कई जानकार और खेलों की गहरी समझ रखने वाले कहते हैं कि इंडिया 17 साल की उम्र में ही क्यों खेले। शुरुआत 12-14 साल से की जाती तो बेहतर रहता। खैर, अब शुरुआत हो चुकी है और उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय खेलों को आगे बढ़ने का सही प्लेटफॉर्म मिल गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी सरकार ने गुरु-शिष्य परंपरा को खास महत्व दिया है। उद्घाटन अवसर पर गोपी चन्द, सतपाल, हरेन्द्र सिंह, संधु आदि कोचों और सुशील, सिंधु, श्रीकांत सरदार, रानी रामपाल, दीपिका करमारकर जैसे खिलाड़ियों को सम्मान देना शानदार रहा।

भारतीय खेलों के इतिहास पर नज़र डालें तो गुरु-शिष्य परंपरा की आड़ में बहुत कुछ गलत होता रहा है। देश के अस्सी फीसदी खिलाड़ियों को तैयार करने वाले गुरुओं को या तो सम्मान नहीं मिला या उनमे से ज़्यादातर को खेल मंत्रालय और खेल प्राधिकरण की साजिश का शिकार होना पड़ा है। खेल संघों का भ्रष्टाचार भी उनको झेलना पड़ा। देश के अंतरराष्ट्रीय, विश्व विजेता और ओलंपिक पदक विजेता खिलाड़ियों पर नज़र डालें तो उनमे से ज़्यादातर को जिस गुरु ने पाठ पढ़ाया, काबिल बनाया उसे कभी द्रोणाचार्य अवॉर्ड नहीं मिला। सरकारी दया पर पलने वाले और फेडरेशन से सांठ-गांठ करने वाले और अवसरवादी कोच द्रोणाचार्य बनते रहे हैं।

हैरानी वाली बात यह है कि देश के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाले चार पांच खिलाड़ी ऐसे हैं जिनके कोच का कोई अता-पता नहीं है। इसी प्रकार कुछ पदक विजेताओं की आड़ में एक से ज़्यादा और चार-पांच अवसरवादी द्रोणाचार्य अवॉर्ड ले उड़े। इतना ही नहीं कई महिला खिलाड़ियों ने अपने पति को कोच बताया और सम्मान दिलाया। उन्हें जिस कोच ने गुर सिखाए वह गुमनामी में खो गया। यह घोटाला सरकारों की देखरेख में हुआ। लेकिन शायद अब ऐसा नहीं होगा। खेलो इंडिया गुरु-शिष्य परंपरा को नई पहचान देगा ऐसी उम्मीद है।

अधिक लेटेस्ट खबरों के लिए यहाँ क्लिक  करें।

(राजेंद्र सजवान)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one × 5 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।