नई दिल्ली: घरेलू धरती पर नियमित तौर पर टीम का हिस्सा रहने वाले रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शायद ही एक साथ अंतिम एकादश में जगह बनाने का मौका मिले क्योंकि अफ्रीकी महाद्वीप के इस देश में स्पिनरों के प्रदर्शन में लगातार गिरावट आयी है और वह खराब से बुरा होता गया है। दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट क्रिकेट में वापसी के बाद से उसकी सरजमीं पर अब तक जो 125 टेस्ट मैच खेले गये हैं अगर उनमें स्पिनरों के प्रदर्शन पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि दक्षिण अफ्रीकी टीम में अदद स्पिनर की कमी के कारण उन्होंने अमूमन तेज गेंदबाजों के माकूल पिचें ही बनायीं और इसमें दो राय नहीं कि विराट कोहली एंड कंपनी को पांच जनवरी से केपटाउन में शुरू हो रही तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में तेज और उछाल वाले विकेटों से ही रूबरू होना पड़ेगा।
दक्षिण अफ्रीका में खेले गये पिछले 125 टेस्ट मैचों में तेज गेंदबाजों और स्पिनरों के प्रदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन करें तो अंतर स्पष्ट नजर आता है। इन मैचों में तेज या मध्यम गति के गेंदबाजों ने 75.46 प्रतिशत गेंदबाजी (29,385 ओवर) की और 81 प्रतिशत विकेट अपने नाम लिखवाये। इस बीच अधिकतर टीमों ने स्पिनरों को मारक हथियार के तौर पर नहीं बल्कि तेज गेंदबाजों को विश्राम देने या ओवर गति तेज करने की खातिर इस्तेमाल किया।
यही वजह है कि भले ही 24.54 प्रतिशत (9556 ओवर) गेंदबाजी की लेकिन उन्हें 19 प्रतिशत ही विकेट मिले। पिछले दस और पांच वर्षों के दौरान भी यह स्थिति नहीं बदली तथा इस बीच स्पिनरों ने तेज गेंदबाजों के दो अन्य गढ़ इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया में भी दक्षिण अफ्रीका की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया।
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