नई दिल्ली: पोलैंड में चल रही अंडर 23 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप से भारतीय ग्रीको रोमन पहलवान खाली हाथ लौट रहे हैं। पदक जीतना तो दूर एक भी पहलवान अंतिम चार में स्थान नहीं बना पाया। कुछ जैसे-तैसे क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे तो बाकी पहले दूसरे राउंड में ढेर हो गये। जाहिर है भारतीय कुश्ती की यह शैली गर्त में जा रही है और भारतीय पहलवानों का भविष्य अंधकारमय है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।
कुछ साल पहले तक ग्रीको रोमन मे हमारे पहलवान ठीक-ठाक चल रहे थे। विश्व स्तर और कॉमनवेल्थ में पदक भी जीते किंतु एक ओर जहां फ्री स्टाइल में चार ओलंपिक पदक जीतने मे कामयाबी मिली तो ग्रीको रोमन मे लगातार पतन की ओर बढ़े और आज आलम यह है कि यह शैली लुप्त होती नज़र आ रही है। क्या कारण है कि इस वर्ग मे लगातार नाकामी क्यों मिल रही है। इस सवाल का जवाब भारतीय कुश्ती फेडरेशन और खेल मंत्रालय ही बेहतर दे सकते हैं। लेकिन जहां तक आम कुश्ती प्रेमी और कोच की बात है तो उन्हें नहीं लगता कि ग्रीको रोमन को कोई भी गंभीरता से ले रहा हो। फेडरेशन ने तो खैर कभी भी ध्यान नहीं दिया। उसका मकसद जैसे तैसे पहलवानों की भीड़
जुटाने का रहा है। उन्हें सरकारी खर्च पर विदेश दौरे कराए जाते हैं और शायद कभी भी नतीजे के बारे मे नहीं पूछा जाता।
हैरानी वाली बात यह है कि भारतीय खेल प्राधिकरण और मंत्रालय भी चन्द फ्री स्टाइल पहलवानों की सफलता के नीचे दबी ग्रीको रोमन की नाकामी पर ध्यान नहीं देता। लेकिन अब वक्त आ गया है कि सरकार ग्रीको रोमन की गिरावट की सच्चाई को समझे। पहलवानों के लिए उच्च प्रशिक्षण और सुविधाएं ज़रूरी हैं लेकिन रिज़ल्ट क्यों नहीं आ रहे इस रहस्य को समझना होगा। खासकर फेडरेशन से पूछा जाना चाहिए कि ग्रीको रोमन का तिरस्कार क्यों हो रहा है।
(राजेंद्र सजवान)