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देश के लिये पदक जीतना सबसे महत्वपूर्ण

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नई दिल्ली : किदाम्बी श्रीकांत का चार साल पहले मस्तिष्क ज्वर के कारण राष्ट्रमंडल खेलों में पदार्पण अच्छा नहीं रहा था लेकिन अब जबकि वह अच्छी फार्म में चल रहे हैं तब इस बैडमिंटन खिलाड़ी की निगाह गोल्ड कोस्ट में अगले महीने होने वाले खेलों में पदक जीतने पर लगी हुई हैं। ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों से कुछ सप्ताह पहले श्रीकांत बीमार पड़ गये थे। उन्हें गोपीचंद अकादमी में बाथरूम के फर्श पर बेहोश पाया गया था। बाद में पता चला कि उन्हें मस्तिष्क ज्वर है। उन्हें एक सप्ताह तक आईसीयू में रहना पड़ा था। लेकिन वह अब बीती बात है और अब श्रीकांत देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं।

उनके नाम पर चार खिताब हैं और उन्होंने पदमश्री सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी हासिल किये। उन्हें अब गोल्ड कोस्ट में स्वर्ण पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। श्रीकांत ने 2014 की घटना को याद करते हुए कहा कि वह किसी वाइरस की वजह से हुआ था जिसका मुझे नाम भी याद नहीं। कोई भी मुझे दिन की घटना के बारे में नहीं बताना चाहता और मुझे भी कुछ याद नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं अच्छा खेल रहा था इसलिए मैंने वापसी की और राष्ट्रमंडल खेलों में खेला लेकिन क्वार्टर फाइनल में सिंगापुर के खिलाड़ी से हार गया। श्रीकांत ने कहा कि अब चार साल बाद मुझे लगता है कि पिछले एक साल में मैंने जो अनुभव हासिल किया उससे मैं आत्मविश्वास से भरा हूं इसलिए यह अलग तरह का अनुभव होगा।

निश्चित तौर पर राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतना मेरी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रमंडल खेल मेरी प्राथमिकता है। विश्व का नंबर एक खिलाड़ी बनने से अधिक महत्वपूर्ण पदक जीतना है। यह मेरा इस वर्ष का एक लक्ष्य है। पारूपल्ली कश्यप ने ग्लास्गो में राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक जीतकर भारत को 32 साल बाद पुरूष एकल में खिताब दिलाया था। अब श्रीकांत पर देश के करोड़ों लोगों की उम्मीदें टिकी रहेंगी। कश्यप से पहले केवल प्रकाश पादुकोण (1978) और सैयद मोदी (1982) ही इन खेलों में बैडमिंटन पुरूष एकल का स्वर्ण जीत पाये थे।

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