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एक प्रधानमंत्री का मां बनना

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न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने बेटी को जन्म दिया। जेसिंडा प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए मां बनने वाली दुनिया की दूसरी महिला बन गई हैं। इससे पहले बेनजीर भुट्टो ने 1990 में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहते हुए बेटी बख्तावर को जन्म दिया था। जेसिंडा अर्डर्न ने अक्तूबर 2017 में न्यूजीलैंड की 40वीं प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। प्रधानमंत्री बनने के तीन माह बाद उन्होंने अपने गर्भवती होने की सूचना दी थी। न्यूजीलैंड में विपक्ष के नेताओं और पूरी दुनिया से उन्हें बधाई संदेश मिल रहे हैं। बच्ची की परवरिश के लिए जेसिंडा के पति क्लार्क गेफोर्ड ने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया है। जब जेसिंडा अर्डर्न ने अपने गर्भवती होने की सूचना दी थी तो दुनियाभर में काफी चर्चा हुई थी। महिलाओं के लिए मां बनना महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण भी होता है। यदि कोई महिला राजनीतिज्ञ हो और देश के सर्वोच्च पद पर हो तो चुनौितयां कई गुना बढ़ जाती हैं।

सवाल यह है कि अगर यह सब भारत में हुआ होता तो शायद रूढ़िवादी लोग तूफान खड़ा कर देते। प्रधानमंत्री को त्यागपत्र देकर घर में बच्चे सम्भालने की सलाह देते। हो सकता है कि कुछ दल प्रदर्शन भी कर देते। वैसे भी पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का राजनीति में पदार्पण कर अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखते हुए शीर्ष पद हासिल करना इतना आसान नहीं होता। पाकिस्तान जैसे पुरुष प्रधान समाज में धार्मिक और रूढ़िवादी देश में महिलाओं के लिए राजनीति में आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है। भारत में तो महिलाओं के लिए हर क्षेत्र खुला है। महिलाओं ने जी-तोड़ मेहनत कर यह सिद्ध कर दिया है कि वे पुरुषों से किसी भी मायने में कमतर नहीं हैं। फिर भी समाज दोहरे मापदंड अपनाता है। अधिकतर लोग यह समझते हैं कि महिलाओं की जिन्दगी की डोर मर्दों के हाथ में हैै। महिलाओं पर तरह-तरह के भावनात्मक विचार थोपे जाते हैं।

मरहूम बेनजीर भुट्टो के सामने भी बहुत सी मुश्किलें पेश आईं। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेरी आपबीती’ में किया है। बेनजीर ने लिखा है  : ‘‘जब 1988 में मैं पहले बच्चे के जन्म की उम्मीद में थी और बिलावल होने वाला था, तब फौजी तानाशाह ने संसद भंग करके आम चुनावों की घोषणा कर दी थी कि वह आैर आला फौजी अफसर सोचते थे कि ऐसी हालत में कोई औरत कैसे चुनावी सभाओं के लिए निकल पाएगी, लेकिन वो गलत साबित हुए। मैं निकली, चुनाव जीता जो 21 सितम्बर 1988 को बिलावल के जन्म के बस कुछ ही दिनों बाद कराए गए। बिलावल का पैदा होना मेरी जिन्दगी का बेहतर खुशी का दिन था। साथ ही उन चुनावों को जीतना भी, जिनके बारे में अटकलें थीं कि एक मुस्लिम आैरत लोगों के दिल और उनकी सोच को कभी नहीं जीत पाएगी।’’

बेनजीर ने उन परिस्थितियों का भी जिक्र किया है जब विपक्ष को पता चला कि वह मां बनने वाली हैं। बेमतलब का शोर-शराबा शुरू हो गया। राष्ट्रपति पर विपक्ष ने दबाव डाला कि बेनजीर को बर्खास्त कर दिया जाए। विपक्ष का तर्क था कि पाकिस्तान के सरकारी नियमों में इस बात की गुंजाइश नहीं है कि प्रधानमंत्री सन्तान को जन्म देने के लिए छुट्टी पर जाए। प्रसव के दौरान बेनजीर सक्रिय नहीं रहेंगी और सरकारी कामकाज को परेशानी का सामना करना पड़ेगा लेकिन बेनजीर ने विपक्ष की मांग को ठुकरा दिया। उसने दिखाया कि कामकाजी महिलाओं के लिए प्रसव के दौरान छुट्टी की व्यवस्था है। बेनजीर ने बेटी बख्तावर के जन्म से पहले भी आ​ॅफिस में काम किया और प्रसव के अगले ही दिन काम पर वापस आकर फाइलों को निपटाना शुरू कर दिया। इस तरह बेनजीर ने एक महिला प्रधानमंत्री की तरह महिलाओं की प्रगति की राह में आड़े आने वाली परम्पराओं की दीवारों को तोड़ दिया।

समाज में क्षेत्र कोई भी हो, उच्च पदों पर पहुंचने वाली महिलाओं को ज्यादा देर तक काम करना पड़ता है। घर और परिवार के लिए ज्यादा कुर्बानियां देनी पड़ती हैं। यात्रा राजनीतिक हो, अभिनव पत्रकारिता, कार्पोरेट या फिर उद्यम की महिलाओं को दिन-रात काम करके यह सिद्ध करना पड़ता है कि वह मर्दों से किसी भी मायने में कम नहीं हैं। जेसिंडा अर्डर्न भाग्यशाली हैं, जिनके सामने भारत-पाकिस्तान की तरह रूढ़िवादी परम्पराएं नहीं हैं। वह स्वयं मानती हैं कि गर्भावस्था का किसी भी महिला के कैरियर की सम्भावनाओं से कोई सम्बन्ध नहीं है। न्यूजीलैंड पहला ऐसा देश है जिसने महिलाओं को वोट डालने का अधिकार 1893 में ही दे दिया था। यहां पुरुषों और महिलाओं के वेतन में मामूली अन्तर है। देश को बदलना है, रूढ़िवादी और दकियानूसी विचारों से मुक्ति पानी है तो सही अर्थों में महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाना होगा। हमें ऐसे देशों से बहुत कुछ सीखना होगा।

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