जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी से अचानक हाथ खींचकर तीन साल पुराने गठबंधन को तोड़ दिया। बीजेपी के इस कदम से सभी हैरान है। अब राज्य में गवर्नर रूल लागू हो गया है, जिसकी मंजूरी राष्ट्रपति कोविंद ने दी । जानकारी के मुताबिक, बीजेपी को जम्मू कश्मीर में अपने वोटरों की बढ़ती नाराजगी और कठुआ मर्डर और रेप कांड पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के रुख के कारण यह फैसला लेना पड़ा।
एक सूत्र ने बताया, ”जम्मू में बीजेपी के वोटर नाराज थे। इसके चलते राज्य में बीजेपी के नेताओं का अपने निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करना भी मुश्किल हो गया था।” कुछ सूत्रों का दावा है कि बीजेपी के नेताओं से उनके निर्वाचन क्षेत्र में इस गठबंधन को लेकर लगातार सवाल किए जा रहे थे।
बीजेपी के नेता कठुआ मर्डर और रेप कांड पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के रुख से खुश नहीं थे। इसके अलावा महबूबा मुफ्ती चाहती थीं कि घाटी में जारी सीज़फायर को रमज़ान के बाद भी बढ़ाया जाए, लेकिन बीजेपी के नेता इसके पक्ष में नहीं थे। लिहाजा मंगलवार को बीजेपी चीफ अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के सभी बीजेपी नेताओं की राय जानी और फिर पार्टी ने सरकार से अलग होने का फैसला कर लिया।
राइजिंग कश्मीर के एडिटर शुजात बुखारी की हत्या के एक दिन बाद उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने बताया था कि ‘रमजान के बाद सीज़फायर को आगे बढ़ाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।’ उनका ये बयान तब आया था जब गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि सीज़फायर पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है।
उधमपुर के सांसद और पीएमओ में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि सीज़फायर के दौरान कोई सहयोग नहीं कर रहा था। ऐसे में इसे जारी रखने का कोई तर्क नहीं है। उन्होंने कहा था, ”अगर इस्लाम के अनुयायियों ने रमजान के पवित्र महीने में पत्थर फेंकने और हिंसा का सहारा लिया, तो हमें शांति कायम रखने की कोई जरूरत नहीं है।” सूत्रों के मुताबिक रमज़ान में सीज़फायर के दौरान सेना के हाथ बांध दिए गए थे।
बीजेपी नेताओं ने राजनाथ सिंह से कहा कि अगर बीजेपी-पीडीपी सरकार के रहते हुए अमरनाथ यात्रियों पर कोई हमला हुआ तो ऐसे में एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हो सकता है। इसके बाद राजनाथ सिंह ने गृह सचिव राजीव गौबा और खुफिया ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की। इस बैठक में जानने की कोशिश की गई कि अगर वहां सरकार गिरती है तो फिर वहां के ज़मीनी हालात क्या होंगे।
पिछले 4 दशक में यहां 8वीं बार राज्यपाल शासन लगा है। पिछले 4 दशक में यहां 8वीं बार राज्यपाल शासन लगा है, जबकि राज्यपाल एनएन वोहरा के कार्यकाल के दौरान यानी 2008 से लेकर अब तक यहां चौथी बार राज्यपाल शासन को मंजूरी मिली है।
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