सुप्रीम कोर्ट ने गुड़गांव में एक निजी स्कूल में सात वर्षीय छात्र की हत्या के आरोपी किशोर की जमानत याचिका आज खारिज कर दी। न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने जमानत याचिका खारिज की। किशोर ने इस आधार पर जमानत का अनुरोध किया था कि जांच एजेन्सी ने 60 दिन के भीतर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया था।
पीठ ने कहा कि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत गंभीर अपराध का मामला है और आरोप पत्र दाखिल करने की अवधि 60 दिन नहीं बल्कि 90 दिन थी। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने छह जून को 16 वर्षीय इस छात्र की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इस पर पिछले सल सितंबर में निजी स्कूल में सात वर्षीय छात्र की हत्या करने का आरोप है।
हाई कोर्ट ने आरोपी की इस दलील को भी ठुकरा दिया था कि चूंकि केन्द्रीय जांच ब्यूरो 60 दिन के भीतर अपनी जांच पूरी करने में विफल रहा है, इसलिए वह जमानत का हकदार है। आरोपी ने हाई कोर्ट में सत्र अदालत के पांच फरवरी के आदेश को चुनौती दी थी। सत्र अदालत ने भी उसे जमानत देने से इंकार कर दिया था।
सत्र अदालत ने 21 मई को कहा था कि 16 वर्षीय इस किशोर पर हत्या के मामले में वयस्क की तरह ही मुकदमा चलेगा। अदालत ने किशोर न्याय बोर्ड के फैसले को बरकरार रखा था जिसने सारे तथ्यों और पहलुओं पर विचार के बाद कहा था कि आरोपी शारीरिक और मानसिक रूप से अपराध करने में सक्षम है ओर इसमें इस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
आरोपी ने किशोर न्याय बोर्ड के पिछले साल 20 दिसंबर के फैसले को चुनौती दी थी जिसने कहा था कि किशोर पर वयस्क की तरह ही मुकदमा चलेगा। हत्या का शिकार हुये सात वर्षीय छात्र का शव भोंडसी इलाके में स्थित एक प्राइवेट स्कूल के शौचालय में मिला था। इस मामले में अदालत ने अपराध का शिकार बच्चे, आरोपी और स्कूल का नाम इस्तेमाल करने से मीडिया को रोक दिया था।
अब इस मामले में पीड़ित को ‘प्रिंस’, आरोपी को ‘भोलू’ और स्कूल को ‘विद्यालय’ कहा जा रहा है। जांच ब्यूरो ने अदालत में दायर आरोप पत्र में कहा था कि इस छात्र ने परीक्षा और अभिभावक – शिक्षक बैठक स्थगित कराने के इरादे से ही पिछले साल आठ सितंबर को सात वर्षीय छात्र की हत्या की थी। पुलिस ने पहले इस मामले में स्कूल बस के ड्राइवर अशोक कुमार को गिरफ्तार किया था परंतु केन्द्रीय जांच ब्यूरो को इस अपराध में उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला था।