लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

कंक्रीट का जंगल

NULL

समूचा विश्व पर्यावरण बचाने में जुटा है। मानव जीवन के लिए प्रदूषण बहुत खतरनाक हो गया है। जो खतरा आज पैदा हो चुका है, उस खतरे के संबंध में विश्नोई समाज के प्रवर्तक भगवान जांभोजी के आम आदमी को 700 वर्ष से अ​िधक समय पहले बता दिया था। जोधपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर गांव खेजडली है। 1730 में इसी गांव में पेड़ों की रक्षा के लिए विश्नोई समाज ने जो बलिदान दिया, वह मानव इतिहास में अद्वितीय है। जोधपुर के राजा अभय सिंह को युद्ध से थोड़ा अवकाश मिला तो उन्होंने महल बनवाने का निश्चय किया। नया महल बनाने के लिए राजा ने मंत्री गिरधारी दास भंडारी को लकड़ियों की व्यवस्था करने को कहा।

मंत्री और दरबारियों ने राजा को सलाह दी कि पड़ोस के गांव खेजडली में खेजड़ी के पेड़ बहुत हैं। वहां से लकड़ी मंगवाने पर चूना पकाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। विश्नोइयों में पर्यावरण के प्रति प्रेम और वन्य जीव संरक्षण जीवन का प्रमुख उद्देश्य रहा है। खेजड़ली गांव में प्रकृति के प्रति समर्पित इसी विश्नोई समाज की 42 वर्षीय महिला अमृता देवी के परिवार में उनकी तीन बेटियों ने पेड़ों की रक्षा के लिए सबसे पहले बलिदान दिया था। जब राजा के कर्मचारी उनके पेड़ काटने आए तो अमृता देवी ने उनका कड़ा विरोध किया। उसने उद्घोष किया-
‘सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तो जाण’
यह कहती हुई वह पेड़ से लिपट गई। क्षण भर में उसका सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया गया। फिर उसकी तीन बे​िटयां पेड़ से लिपटीं तो उनकी भी गर्दन काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया गया। यह खबर फैली तो ऐसा जलजला उठा कि सब प्राणों की आहूति देने आगे आ गए। कुल 363​ विश्नोइयों ने पेड़ों की रक्षा के लिए ब​िलदान दिया। राजा को पेड़ों की कटाई रोकनी पड़ी। यही था भारत का पहला चिपको आन्दोलन। आज पर्यावरण असंतुलित हो चुका है। यह हमारे लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरे की घंटी है। दिल्ली विश्व का सबसे प्रदूषित शहर बन चुका है। दिल्ली विषाक्त गैसों का चैम्बर बन चुकी है। न तो सरकारें चेतीं आैर न ही मानव। अब दिल्ली में सैंट्रल गवर्नमैंट के अधिकारियों आैर कर्मचारियों के घर बनाने के लिए करीब 17 हजार पेड़ काटे जाएंगे। इनमें से 11 हजार पेड़ तो सरोजनी नगर में ही काटे जाएंगे। स्थानीय निवासियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। लोग पेड़ों से चिपक कर विरोध कर रहे हैं। आनलाइन मुहिम भी तेज हो गई है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है जिसके बाद हाईकोर्ट ने एनबीसीसी और सीपीडब्ल्यूडी से जवाब भी मांगा है। अनियोजित आैर अंधाधुंध विकास के चलते दिल्ली अब रहने योग्य शहर नहीं।

बढ़ते प्रदूषण के कारण दिल्ली में अब सांस लेना भी दूभर हो चुका है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि 17 हजार पेड़ काटे गए तो इसका असर 20 वर्षों तक दिखाई देगा। पेड़ कटने के बाद निर्माण होने पर प्रदूषण आैर बढ़ेगा। एक पौधे के पेड़ बनने में कितना समय और पानी लगता है, इतने पेड़ों के कटने का मतलब अगले कई वर्षों तक दिल्ली में बड़ी मात्रा में आक्सीजन छीन लेना है। एक पेड़ एक वर्ष में 260 पाउंड यानी 118 किलो आक्सीजन देता है। दो बड़े पेड़ चार लोगों के परिवार को पूरी जिन्दगी आक्सीजन देने के लिए पर्याप्त हैं। दिल्ली का ग्रीन कवर कई शहरों से अच्छा था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कई बड़ी परियोजनाओं के चलते पेड़ों को काटा गया। वह चाहे मैट्रो का विस्तार हो या प्रगति मैदान का पुन​िर्वकास हो या फिर सड़कों को चौड़ा करने की योजना, विकास का अर्थ अब फ्लैट या उद्योग हो गया है लेकिन कोई सोच नहीं रहा कि हम इस विकास के नाम पर विनाश का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
हरे-भरे खेत प्लाट हो गए
प्लाट घर हो गए।
घर दुकान बन गई
फिर भी हम पर्यावरण
की बातें करते हैं।
पेड़ हमारे जीवन का अस्तित्व है। पेड़ों के बिना धरती पर जीवन की कल्पना करना असंभव है। यह धरती की अमूल्य सम्पदा है। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी कह रहे हैं कि पूरे शहर में डेढ़ लाख पौधे लगाए जाएंगे लेकिन इनके पेड़ बनने में वर्षों लग जाएंगे। यदि पेड़ न हों तो पर्यावरण का संतुलन ही बिगड़ जाएगा आैर सब ओर तबाही मचेगी। आजकल मनुष्य विकास के नाम पर कंक्रीट का जंगल बना रहा है आैर वह भी प्राकृतिक सम्पदा की कीमत पर।

पेड़ प्रकृति की देन है जिसका कोई विकल्प उपलब्ध नहीं। पेड़ सिर्फ हमें ही लाभ नहीं पहुंचाता, आने वाली पीढ़ियों को भी लाभ पहुंचाता है। दिल्ली में प्रदूषण की समस्या का हल सरकार और पर्यावरणविद् बैठकर निकाल सकते हैं। वर्तमान स्थिति में ऐसा लग रहा है कि हम पेड़ों को बचाना तो चाहते हैं परन्तु लोगों को घर मुहैया कराने के लिए हम असहाय हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा तो हम प्रकृति की अमूल्य सम्पदा को धीरे-धीरे लुप्त कर देंगे। आज पहाड़ नग्न हो चुके हैं, नदियां विषाक्त हो चुकी हैं, सागर नीले होने की बजाय काले हो चुके हैं। प्राकृतिक आपदाएं मानव जीवन को निगल रही हैं। कुछ सोचिए, विचार कीजिए कि मानव जीवन आैर प्रकृति की रक्षा कैसे की जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 + one =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।