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चीन-पाक गलियारे पर भारत के रुख की समीक्षा नहीं – सीतारमण

सीतारमण ने कहा कि भारत चीन के साथ अपने रिश्ते को चीन – पाकिस्तान संबंधों के आईने से नहीं देखता । चीन-पाक गलियारे पर भारत के रुख की समीक्षा नहीं

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि भारत चीन के साथ अपने रिश्ते को चीन – पाकिस्तान संबंधों के आईने से नहीं देखता । उन्होंने भारत – चीन संबंधों में एक बड़ी रुकावट सीपीईसी परियोजना पर भारत के रुख की समीक्षा की संभावना से इनकार किया।  उन्होंने यह भी कहा कि भारत उसके पड़ोसियों को चीन द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता और उसपर उसके संभावित परिणाम को लेकर सतर्क है।

मंत्री ने ‘ चेन्नई सेंटर फोर चाइना स्टडीज ’ की 10 वीं वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम में कहा , ‘‘ एक बात , मैं यहां आश्वस्त करना चाहती हकि हम चीन के साथ अपने संबंधों को चीन – पाकिस्तान संबंधों के आईने से नहीं देखते हैं। ’’

उन्होंने चीन – पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का मुद्दा उठाया और स्पष्ट किया , ‘‘ यह संप्रभुता का मुद्दा है और हम उस मामले पर (पहले से स्पष्ट किये गये रुख से भिन्न) विचार स्वीकार नहीं करेंगे। ’’

सीपीईसी में कई परियोजनाएं हैं जिनका लक्ष्य पाकिस्तान में बुनियादी ढांचे में उन्नयन तथा दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध में मजबूत करना है। यह गलियारा दक्षिण पश्चिम पाकिस्तान के ग्वादर को चीन के शिनजियांग प्रांत को जोड़ेगा तथा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरेगा। भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर अपना हक होने का दावा करता है।

सीतारमण ने कहा , ‘‘ हमारे कई पड़ोसियों को जिस प्रकार की आर्थिक सहायता दी जा रही है , वह वहां की अर्थव्यवस्थाओं पर स्पष्ट रुप से असर डाल रही है और उन देशों के साथ संबंधों को गुथने में मदद कर रही है। ’’

उन्होंने कहा , ‘‘ फलस्वरुप , रणनीतिक मौजूदगी भी हो सकती है। मुझे संबंध नजर आता है। यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे मैं मानती हूं कि बतौर थिंक टैंक (चेन्नई सेंटर फोर चाइना स्टडीज) आपको और सरकार के तौर पर हमें लगातार चौकन्ना रहने और उसके परिणामों को समझने की जरुरत है। ’’

उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना हथियारों एवं उपकरणों के लिए लगातार चीनियों पर निर्भर होती जा रही है। चीन पाकिस्तान संबंधों में मौलिक बदलाव की संभावना नहीं है।

रक्षामंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच पिछले महीने के अनौपचारिक सम्मेलन बस ‘ आया – गया ’ परिघटना नहीं है , बल्कि दोनों देश इससे काफी लाभान्वित होंगे।

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