केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने आज वामपंथी पार्टियों पर निशाना साधते हुए कहा कि भाकपा ने आपतकाल का समर्थन किया था जबकि माकपा ने इस दमनकारी दौर के खिलाफ संघर्ष में सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं लिया था।
आपातकाल के मुद्दे पर अपने आलेख के तीसरे और अंतिम हिस्से में जेटली ने हैरत जताई कि राम मनोहर लोहिया के समाजवादी समर्थक और प्रशंसक लंबी अवधि में कांग्रेस के साथ कैसे काम करेंगे।
जेटली ने फेसबुक पर डाले गए अपने आलेख में लिखा , ‘‘ भारत की वामपंथी पार्टियां मेरे लिए हमेशा पहेली रही हैं। भाकपा तो आपातकाल की बेशर्म समर्थक थी। इसकी राजनीतिक सोच थी कि आपातकाल फासीवाद के खिलाफ जंग है। ’’
केंद्रीय मंत्री ने लिखा , ‘‘ सैद्धांतिक तौर पर माकपा आपातकाल के खिलाफ और इसकी आलोचक थी , लेकिन उसने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में सक्रिय भागीदारी नहीं की। उसके सिर्फ दो सांसद गिरफ्तार किए गए थे। उसके पोलित ब्यूरो के सदस्यों , केंद्रीय कमेटी के सदस्यों और छात्र नेताओं की गिरफ्तारी नहीं के बराबर हुई थी। ’’
उन्होंने कहा कि कांग्रेस (ओ), समाजवादी पार्टियां , स्वतंत्र पार्टी , जनसंघ और आरएसएस आपातकाल के खिलाफ सत्याग्रह और प्रदर्शन में प्रमुख भागीदार थे।
जेटली ने कहा कि समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के प्रशंसकों और आपातकाल के बाद उनके उदय ने बहुत जिज्ञासा पैदा की है। उन्होंने कहा , ‘‘ जॉर्ज फर्नांडीज , मधु लिमये और राज नारायण उनकी (लोहिया की) विरासत का प्रतिनिधित्व करते थे और ये सभी कांग्रेस विरोधी थे। ’’
उन्होंने कहा , ‘‘ आज उत्तर प्रदेश में श्री मुलायम सिंह यादव और बिहार में श्री नीतीश कुमार को वह विरासत मिली है। कांग्रेस विरोध की प्रवृति दोनों में दिखती है , लेकिन श्री मुलायम सिंह यादव जी की पार्टी कांग्रेस के साथ हमेशा काम करने के लिए तैयार दिखती है। ’’
जेटली ने कहा , ‘‘ इस पर मेरे हमेशा से गंभीर संदेह रहे हैं कि डॉ . लोहिया और पंडित नेहरू के राजनीतिक डीएनए का प्रतिनिधित्व करने वाले लंबी अवधि में कभी साथ मिलकर काम कर सकते हैं। ’’
केंद्रीय मंत्री जेटली की टिप्पणियां अहम हैं क्योंकि कांग्रेस , समाजवादी पार्टी , तृणमूल कांग्रेस सहित कई अन्य विपक्षी पार्टियां अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबले के लिए गठबंधन की कोशिशें कर रही हैं।
जेटली ने लिखा कि आपातकाल में सबसे परेशान करने वाली बात तो यह थी कि जब केंद्र सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाया तो पूरी व्यवस्था धराशायी हो गई।
उन्होंने कहा , ‘‘ उच्चतम न्यायालय पूरी तरह अधीन होकर काम करने लगा , मीडिया चापलूसी करने लगा। आपातकाल के बाद आडवाणी जी ने दिल्ली की मीडिया से कहा था कि जब आपसे झुकने को कहा गया तो आप रेंगने लगे। दो लाख से ज्यादा फर्जी प्राथमिकियां दर्ज की गईं और किसी पुलिस अधिकारी ने शायद ही विरोध किया हो। हिरासत का कोई आधार नहीं होने के बाद भी हिरासत में लेने के हजारों आदेश जारी किए गए। ’’
जेटली ने कहा , ‘‘ शायद ही किसी कलक्टर ने अवैध हिरासत आदेश पर दस्तखत करने से इनकार किया। प्रचार के दौरान भी जब नतीजे अवश्यंभावी हो गए तो श्रीमती गांधी दीवार पर लिखी इबारत देखने को तैयार नहीं थीं। उन्होंने न्यायमूर्ति एच आर खन्ना की अनदेखी करके न्यायमूर्ति बेग को भारत का प्रधान न्यायाधीश बना दिया। न्यायमूर्ति खन्ना ने इस्तीफा दे दिया। पालखीवाला ने टिप्पणी की थी कि अब प्रधान न्यायाधीश का पद न्यायमूर्ति खन्ना के लिए बहुत छोटा हो गया है।
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