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चीन की गोद में नेपाल

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एशिया में भारत के बढ़ते दबदबे से परेशान चीन पहले ही पाकिस्तान में बड़ा निवेश करके उसे अपना बैस्ट फ्रैंड बना चुका है और उसने नेपाल में भी अपनी अच्छी-खासी जमीन तैयार कर ली है। एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने के मकसद से ही चीन लगातार नेपाल में अपना निवेश बढ़ाता जा रहा है। नेपाल भी चीन की गोद में बैठ रहा है जिससे भारत की चिन्ताएं बढ़ गई हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के चीन दौरे के दौरान चीन और नेपाल में 152 अरब रुपए के 8 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौते दोनों सरकारों और निजी क्षेत्रों के बीच हुए, जहां चीनी निवेशक पनबिजली, सीमेंट कारखानों और फलों की खेती आैर कृषि में निवेश करेंगे। फरवरी से सत्तासीन होने के बाद के.पी. शर्मा ओली का यह पहला चीन का आधिकारिक दौरा है। इस दौरे के दौरान ‘बेल्ट एण्ड रोड’ पहल के तहत कई परियोजनाओं और बीजिंग की भारत-नेपाल-चीन आर्थिक गलियारे की योजना पर भी विचार-विमर्श हुआ। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में ओली ने चीन और नेपाल सम्बन्धों को बढ़ावा दिया था। उन्होंने उस समय मधेशी आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के समय भारत पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए चीन के साथ ट्रांजिट व्यापार संधि भी की थी। चीन नेपाल में सबसे बड़ा निवेशक हो गया है। पिछले वित्त वर्ष 2017 में 15 अरब नेपाली रुपयों का विदेशी निवेश हुआ था।

इसमें से आधे से भी ज्यादा यानी 8.35 अरब नेपाली रुपए का निवेश चीन ने किया था, वहीं इसी वित्त वर्ष में भारत ने नेपाल में 1.99 अरब रुपयों का निवेश किया था तो दक्षिण कोरिया ने 1.88 अरब नेपाली रुपयों का निवेश किया था। चीन ने नेपाल में कुछ बड़े-बड़े प्रोजैक्ट पहले ही अपने नाम कर लिए हैं। चाहे वह पोरबंदर इंटरनेशनल एयरपोर्ट हो या कुछ हाइड्रो-इलै​िक्ट्रसिटी परियोजनाएं। नेपाल में फिलहाल 341 से भी ज्यादा प्रोजैक्ट चल रहे हैं जिनमें से 125 चीन के पास हैं और भारत के पास केवल 23 प्रोजैक्ट हैं। नेपाल ने चीन में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए दीर्घकालीन योजना पर काम किया है। कुछ समय पहले एक रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन ने कुछ तिब्बती समूहों की नेपाल में घुसपैठ कराई थी। इनमें से अधिकतर तिब्ब​ितयों के पास चीन के पासपोर्ट थे। चीनी दूतावास के अधिकारियाें ने इन लोगों और नेपाली प्रशासन के बीच डील कराने में मदद की थी। पहले नेपाल में अमेरिकी दूतावास सबसे ज्यादा ताकतवर था लेकिन अब चीनी दूतावास सबसे ज्यादा सक्रिय है। भारत की ही तरह चीन के लिए नेपाल बहुत अहम रहा है। दोनों देशों के अच्छे द्विपक्षीय सम्बन्ध चीन और स्वायत्त तिब्बत की स्थिरता के लिए बहुत जरूरी हैं। 2006 तक नेपाल के आंतरिक मामले में भारत की निर्णायक हैसियत होती थी लेकिन अब वह बात नहीं रही। इसी साल मार्च में ओली ने पाक प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी का अपने देश में स्वागत किया था। भारत के लिए यह असहज करने वाला है कि नेपाल वन बेल्ट वन रोड परियोजना का समर्थन कर रहा है।

चीनी रेलवे का विस्तार कर हिमालय के जरिये नेपाल तक ले जाने की परियोजना पर भी काम जारी है। 2015-16 में मधेशी आंदोलन के दौरान हुई आर्थिक नाकेबंदी के चलते भारत से नेपाल काे सप्लाई में आपूर्ति पूरी तरह ठप्प हो गई थी, इसी दौरान नेपाल को चीन के करीब जाने का मजबूत तर्क भी मिला। नेपाल एक संप्रभु देश है और वह अपनी विदेश नीति को किसी देश के मातहत होकर आगे नहीं बढ़ाएगा। के.पी. शर्मा ओली ने इस बात को मजबूती से स्थापित करने की कोशिश भी की है। के.पी. शर्मा भारत विरोधी भावनाओं का इस्तेमाल कर सत्ता में पहुंचे हैं। भारत, नेपाल और चीन की गतिविधियों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों को इस बात की आशंका है कि नेपाल चीन के जाल में फंसकर मालदीव, जिबूती, तजाकिस्तान, लाओस, पाकिस्तान, मंगोलिया और श्रीलंका की तरह कहीं बड़े कर्ज के बोझ तले न दब जाए।

चीन की विस्तारवादी नीतियों से पूरी दुनिया वाकिफ है। नेपाल और चीन की बढ़ती घनिष्ठता कई सवालों को जन्म देती है जिसके परिप्रेक्ष्य में नेपाल आैर भारत के सम्बन्धों को भी तोला जा रहा है। भारत-नेपाल सम्बन्ध संस्कृति के धरातल पर हैं जिन्हें अलग-अलग देखना मुश्किल है। चीन की नीतियां यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि नेपाल के साथ चीन का सम्बन्ध केवल नेपाल के विकास को लेकर है या भारत को घेरने की एक सोची-समझी नीति। जो तस्वीर उभर रही है उससे तो यही लगता है कि वह भारत की घेराबंदी करने में ही जुटा है। नेपाल की जनता चीन का साथ देने पर भी बंटी हुई है। पहाड़ी समुदाय चीन का समर्थन कर रहा है तो तराई क्षेत्र भारत से ज्यादा करीबियां चाहता है। देखना है भविष्य में क्या होता है।

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