इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि आपराधिक मामलों के लंबित रहने के आधार पर एक चयनित उम्मीदवार को नियुक्ति देने से मना करने के मामले में अधिकारियों को एक ऐसी प्रक्रिया अपनानी चाहिए जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुरूप हो।
न्यायमूर्ति अजय भनोट ने पिछले शुक्रवार को यह फैसला देते हुए कहा, उम्मीदवार के खिलाफ जो भी सामग्री है, वह उसे उपलब्ध कराई जाना आवश्यक है जिससे उम्मीदवार अपने बचाव में उसका उपयोग कर सके। आवश्यकता पड़ने पर अमुक उम्मीदवार को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने यह फैसला सनी कुमार नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। सनी कुमार की उत्तर प्रदेश पुलिस में नियुक्ति जालौन के पुलिस अधीक्षक द्वारा आपराधिक मामलों के लंबित रहने के आधार पर निरस्त कर दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ लंबित सभी आपराधिक मामलों की सही सही जानकारी सत्यापन के हलफनामे में उपलब्ध कराई थी और दो मामलों में उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है। इस याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता विभिन्न आपराधिक मामलों में नामज़द है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने अवतार सिंह के मामले में दिए गए फैसले को आधार बनाया जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा था, एक ऐसे मामले में जहां कर्मचारी ने आपराधिक मामले का सही सही ब्यौरा दिया है, नियोक्ता के पास पूर्ववर्ती बातों पर विचार करने का अधिकार है और उसे अमुक उम्मीदवार की नियुक्ति करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
नियुक्ति रद्द करने के आदेश और अधिकारियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर गौर करने के बाद अदालत ने पाया कि उक्त आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का पूर्ण अवसर दिया गया। अदालत ने इस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।