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मुलायम के बाद अखिलेश के सामने खड़ी हुई कई चुनौतियां, पार्टी, परिवार और विरासत कैसे संभालेंगे पूर्व सीएम ?

उत्तर प्रदेश की सियासत के धुरंधर मुलायम सिंह यादव ने दो दिन पहले दुनिया को अलविदा कह दिया। बीते दिन सैफई में 82 वर्षीय नेता पंचतत्व में विलीन हो गए।

उत्तर प्रदेश की सियासत के धुरंधर मुलायम सिंह यादव ने दो दिन पहले दुनिया को अलविदा कह दिया। बीते दिन सैफई में  82 वर्षीय नेता पंचतत्व में विलीन हो गए। मुलायम परिवार के आवास से करीब 500 मीटर दूर मेला ग्राउंड में बेटे अखिलेश ने पिता को मुखग्नि दी। मुलायम सिंह को अंतिम श्रद्धाजंलि देने के लिए सैफई में नेताओं और आम जनता का हुजूम उमड़ पड़ा था। इसके बाद अब अखिलेश यादव को सपा की कमान पूरी तरह से संभालनी है। उनके सामने कई चुनौतियां है, जिसे उन्हें पार करना है। 
अखिलेश के सामने कई चुनौतियां  
एक रिपोर्ट के अनुसार अखिलेश के सामने यादव परिवार को एकजुट रखने के साथ-साथ सपा के सियासी आधार और मुलायम के एम-वाई समीकरण को अपने कण्ट्रोल में रखने की बड़ी जिम्मेदारी है। अखिलेश के सामने आगे ऐसी कई चुनौतियां आने वाली है, जिसे नेताजी ने बड़े बखूबी से संभाल रखा था। अब देखना ये है कि अखिलेश यादव इन जिम्मेदारियों को कैसे निभाते है। 
परिवार को साथ रखना होगा कठिन 
बता दें, अखिलेश के सामने सबसे पहली बड़ी जिम्मेदारी है कि वो परिवार को कैसे एकजुट रखते है। क्योंकि परिवार के दर्जनभर सदस्य राजनीति से जुड़े हुए है। कुछ की राहें अलग है, जिस वजह से उनलोगों के बीच तकरार और मनमुटाव होते रहता है। जब तक नेताजी थे सभी एक धागे में बंधे थे। अब वो नहीं है तो सभी आजाद है। सबसे पहले बात शिवपाल यादव से करे तो वो अखिलेश के चाचा जरूर है, लेकिन अखिलेश उन्हें सियासी तौर पर साथ लेकर चलने के लिए राजी नहीं है, जबकि चाचा के साथ उनके पारिवारिक रिश्ते अच्छे है। 
एम-वाई समीकरण को साथ लेकर चलना मुश्किल 
वही, अखिलेश यादव के सामने एम-वाई समीकरण को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी है। क्योंकि उनके इस वोट बैंक में बसपा से लेकर  AIMIM और कांग्रेस सेंध मार चुकी है। जिस वजह से अब अखिलेश के सामने ये चुनौती है की वो अपने इस वोट बैंक को बचा के रखे। नहीं तो भविष्य के चुनावों में उन्हें नुकसान झेलना पड़ सकता है। 

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