‘पहली पत्नी और बच्चों का भरण पोषण करने में असमर्थ मुस्लिम पति दूसरी शादी नहीं कर सकता है’ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में पति की याचिका पर ये बयान दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल नहीं कर सकता, तो कुरान उसे दूसरी बार शादी करने की इजाजत नहीं देता।
हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला को अपने पति के साथ रहने के लिए मजबूर करने से इनकार कर दिया, जिसने अपनी बीवी की सहमति के बगैर और उसे बिना बताए दूसरी शादी की थी। दरअसल, पति ने पहली पत्नी के साथ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए फैमिली कोर्ट में मुकदमा दायर किया था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। जिसके बाद इस आदेश को चुनौती देते हुए पति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
19 सितंबर 2022 को दिए गए इस फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि महिलाओं का सम्मान करने वाले देश को ही सभ्य देश कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा, “मुसलमानों को खुद ही एक पत्नी के रहते दूसरी से शादी करने से बचना चाहिए। एक पत्नी के साथ न्याय न कर पाने वाले मुस्लिम को खुद कुरान ही दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं देता।”
हाईकोर्ट ने कुरान के हवाले से कहा कि अगर मुस्लिम अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल करने में सक्षम नहीं है, तो उसे दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं होगी। कोर्ट अगर पहली पत्नी की मर्जी के खिलाफ उसे पति के साथ रहने को मजबूर करती है, तो यह महिला की गरिमा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लघंन होगा।
जस्टिस एस पी केसरवानी और जस्टिस राजेन्द्र कुमार की खंडपीठ ने कहा कि अगर पत्नी को ऐसी परिस्थितियों में अपने पति के साथ रहने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
क्या है मामला?
दरअसल, पति ने दूसरी शादी करने के बाद अपनी पहली पत्नी को इसकी जानकारी नहीं दी थी। वह अपनी दोनों पत्नियों के साथ रहना चाहता था, हालांकि पहली पत्नी ने शख्स के साथ रहने और उसे किसी दूसरी महिला के साथ बांटने से इनकार कर दिया, जिसके बाद पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी थी। जिसके बाद इस आदेश को चुनौती देते हुए पति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।