देशभर में कोरोना वायरस का प्रकोप जारी है। इससे निपटने के लिए देश में 21 दिनों का लॉकडाउन लागू है। इसी बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लॉकडाउन के चलते वकीलों और उनके मुंशी के समक्ष आ रही आर्थिक दिक्कतों का स्वतः संज्ञान लेते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया, बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और अन्य बार एसोसिएशन को बृहस्पतिवार को नोटिस जारी कर पूछा कि जरूरतमंद वकीलों और उनके मुंशी की मदद के लिए क्या कदम उठाए गए हैं या उठाए जा रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने वकीलों और उनके लिपिकों के समक्ष आ रही दिक्कतों का स्वतः संज्ञान लेते हुए बार काउंसिल और बार एसोसिएशन के अधिकारियों को ईमेल के जरिए अपने जवाब भेजने और वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत का सहयोग करने को कहा।
पीठ ने वकीलों के कल्याण वाले इन निकायों को नोटिस जारी करते हुए कहा, “इस अदालत के पास कोई कोष नहीं है जिससे कि वह जरूरतमंद वकीलों और पंजीकृत लिपिकों की मदद के लिए धन आवंटित कर सके और फिलहाल यह अदालत अपना संपूर्ण कामकाज बहाल करने की स्थिति में नहीं है।”
पीठ ने कहा, “अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत वकील बिरादरी का कल्याण सुनिश्चित करने और जरूरतमंद वकीलों की मदद करने की जिम्मेदारी बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य के बार काउंसिल की है। प्रत्येक अदालत में अधिवक्ताओं का संघ परिचालन में है और इस तरह की अदालत से संबद्ध बार एसोसिएशनों का आवश्यक तौर पर अपने सदस्यों का ख्याल रखना चाहिए।”
पीठ ने नयी दिल्ली स्थित बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सचिव, बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार के विधि विभाग के प्रमुख सचिव, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव, इलाहाबाद हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिशन के महासचिव, लखनऊ के अवध बार एसोसिशन के महासचिव को जरूरतमंद अधिवक्ताओं और उनके पंजीकृत लिपिकों की मदद के लिए उठाए गए या उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताने को कहा है। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 15 अप्रैल निर्धारित की है।