लखनऊ में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में पिछले दिनों हिंसा के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति को अधिक नुकसान हुआ था। इस नुकसान के वसूली के लिए राज्य सरकार की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर रविवार को सुनवाई पूरी कर ली और सोमवार को इसपर फैसला सुनाया जाएगा।
इस मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने कहा कि नौ मार्च, 2020 को दोपहर 2 बजे आदेश सुनाया जाएगा। राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने आज दलील दी कि अदालत को इस तरह के मामले में जनहित याचिका की तरह हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत को ऐसे कृत्य का स्वतः संज्ञान नहीं लेना चाहिए जो ऐसे लोगों द्वारा किए गए हैं जिन्होंने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है।
महाधिवक्ता ने कथित सीएए प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की राज्य सरकार की कार्रवाई को “डराकर रोकने वाला कदम” बताया ताकि इस तरह के कृत्य भविष्य में दोहराए न जाएं। इससे पूर्व, इस अदालत ने 7 मार्च, 2020 को पिछले साल दिसंबर में सीएए के विरोध के दौरान हिंसा के आरोपियों के पोस्टर लगाए जाने की घटना का स्वतः संज्ञान में लिया था। अदालत ने कल ही अपने आदेश में लखनऊ के डीएम और मंडलीय आयुक्त को उस कानून के बारे में बताने को कहा था जिसके तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर एवं होर्डिंग लगाए गए।
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रविवार को जब अदालत ने सुबह 10 बजे इस मामले में सुनवाई शुरू की, तो अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी ने अदालत को सूचित किया कि इस मामले में महाधिवक्ता राज्य सरकार का पक्ष रखेंगे। इसके बाद अदालत ने अपराह्न तीन बजे इस मामले की सुनवाई का निर्णय किया। जब अदालत में दोबारा यह मामला आया, तो महाधिवक्ता ने अदालत को राज्य सरकार के रुख से अवगत कराया। उनकी दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिसे कल दोपहर 2 बजे सुनाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि पुलिस ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में किये गए विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा में लिप्त आरोपियों की पहचान कर पूरे लखनऊ में उनके कई पोस्टर लगाए हैं। पुलिस ने करीब 50 लोगों की पहचान कथित उपद्रवियों के तौर पर की है और उन्हें नोटिस जारी किया। पोस्टर में जिन लोगों की तस्वीरें हैं उसमें कांग्रेस नेता सदफ जाफर और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी भी शामिल हैं।
उन होर्डिंग्स में आरोपियों के नाम, फोटो और आवासीय पतों का उल्लेख है। इसके परिणाम स्वरूप नामजद लोग अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं। इन आरोपियों को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करने को कहा गया है और भुगतान नहीं करने पर जिला प्रशासन द्वारा उनकी संपत्तियां जब्त करने की बात कही गई है।