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वाराणसी में बोले अमित शाह-वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति भी इतिहास न बनती

गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, महाभारत काल के 2,000 साल बाद 800 साल का कालखंड दो प्रमुख शासन व्यवस्थाओं के कारण जाना गया।

केंद्रीय गृहमंत्री व बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह आज काशी हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय की अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी ‘गुप्तवंशक-वीर: स्कंदगुप्त विक्रमादित्य’ के शुभारंभ के अवसर के वाराणसी पहुंचे है। जहां लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी अगवानी की। 
कार्यक्रम में बोलते हुए अमित शाह ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आज देश फिर से एक बार अपनी गरिमा पुन: प्राप्त कर रहा है। पूरी दुनिया के अंदर भारत दुनिया के अंदर सबसे बड़ा लोकतंत्र है इसकी स्वीकृति आज जगह-जगह पर दिखाई पड़ती है। पूरी दुनिया आज भारत के विचार को महत्व देती है। 
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उन्होंने कहा कि वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति भी इतिहास न बनती, उसे भी हम अंग्रेजों की दृष्टि से देखते। वीर सावरकर ने ही 1857 को पहला स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया। उन्होंने कहा, पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की तब उनकी सोच जो भी रही हो, लेकिन स्थापना के उसके इतने वर्षों बाद भी ये विश्वविद्यालय हिन्दू संस्कृति को अक्षुण रखने के लिए अडिग खड़ा है और हिंदू संस्कृति को आगे बढ़ा रहा है। 
सम्राट स्कन्दगुप्त ने भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषा, भारतीय कला, भारतीय साहित्य, भारतीय शासन प्रणाली, नगर रचना प्रणाली को हमेशा से बचाने को प्रयास किया है। सैकड़ों साल की गुलामी के बाद किसी भी गौरव को पुनः प्रस्थापित करने के लिए कोई व्यक्ति विशेष कुछ नहीं कर सकता, एक विद्यापीठ ही ये कर सकता है। भारत का अभी का स्वरूप और आने वाले स्वरूप के लिए हम सबके मन में जो शांति है, उसके पीछे का कारण ये विश्वविद्यालय ही है।

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गृहमंत्री ने कहा, महाभारत काल के 2,000 साल बाद 800 साल का कालखंड दो प्रमुख शासन व्यवस्थाओं के कारण जाना गया। मौर्य वंश और गुप्त वंश। दोनों वंशों ने भारतीय संस्कृति को तब के विश्व के अंदर सर्वोच्च स्थान पर प्रस्थापित किया। गुप्त साम्राज्य की सबसे बड़ी सफलता ये रही कि हमेशा के लिए वैशाली और मगध साम्राज्य के तकराव को समाप्त कर एक अखंड भारत के रचना की दिशा में गुप्त साम्राज्य आगे बढ़ा था।
उन्होंने कहा,चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को इतिहास में बहुत प्रसिद्धि मिली है। लेकिन उनके साथ इतिहास में बहुत अन्याय भी हुआ है। उनके पराक्रम की जितनी प्रशंसा होनी थी, उतनी शायद नहीं हुई। जिस तकक्षिला विश्वविद्यालय ने कई विद्वान, वैद्, खगोलशात्र और अन्य विद्वान दिए, उस तकक्षिला विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर दिया गया था। तब सम्राट स्कंदगुप्त ने अपने पिता से कहा कि मैं इसका सामना करूंगा और उसके बाद 10 साल तक जो अभियान चला, उसमें समग्र देश के अंदर हूणों का विनाश करने का पराकम्र स्कंदगुप्त ने ही किया। 
अपने इतिहास को संजोने, संवारने, अपने इतिहास को फिर से रीराइट करने की जिम्मेदारी, देश की होती है, जनता की होती है, देश के इतिहासकारों की होती है। हम कब तक अंग्रेजों को कोसते रहेंगे। उन्होंने कहा कि आज देश स्वतंत्र है, हमारे इतिहास का संशोधन करके संदर्भ ग्रन्थ बनाकर इतिहास का पुन: लेखन करके लिखें। मुझे भरोसा है कि अपने लिख इतिहास में सत्य का तत्व है इसलिए वो जरूर प्रसिद्ध होगा। 
स्कंदगुप्त का बहुत बड़ा योगदान दुर्ग की रचना, नगर की रचना और राजस्व के नियमों को संशोधित करके शासन व्यवस्था को आगे बढ़ाने में है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज स्कंदगुप्त पर अध्ययन के लिए कोई 100 पेज भी मांगेगा, तो वो उपलब्ध नहीं हैं।

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