समाजवादी पार्टी (सपा ) द्वारा अपने नेताओं को धार्मिक मुद्दों पर बहस से बचने की सलाह के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा महिलाओं ,आदिवासियों ,दलित ,पिछड़े को अपमान से बचाना ,सम्मान दिलाना यह धार्मिक मुद्दा नहीं है।
मौर्य ने पिछले 22 जनवरी को एक बयान में ‘ रामचरितमानस’ की आलोचना करते हुए कहा इसके कुछ अंशो से दलितों , पिछड़ों और महिलाओं की भावनाएं आहत होती हैं ,इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक दलों के साथ- साथ धार्मिक संस्थानों ने भी इस बयान का विरोध किया और एक खासा विवाद खड़ा हो गया। जब विवाद अधिक बढ़ता दिखा तो
पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी ने बयान जारी कर कहा। पार्टी अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सभी कार्यकर्ताओं, पार्टी नेताओं, पदाधिकारियों तथा प्रवक्ताओं को हिदायत दी है कि वे टीवी चैनलों पर होने वाली चर्चाओं के दौरान साम्प्रदायिक मुद्दों पर बहस से परहेज करें.मौजूदा सरकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) धार्मिक मुद्दे उठाकर जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों से भटकाने की लगातार कोशिश कर रही है, अतः सपा नेता टीवी चैनलों पर धर्म से सम्बन्धित बहसों में नहीं उलझें।
विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण के बाद सदन से बाहर आने पर सपा महासचिव एवं विधान परिषद सदस्य मौर्य ने पत्रकारों द्वारा धार्मिक मुद्दों पर बहस न करने के पार्टी के फैसले के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘पहली बात तो यह कि देश की महिलाओं, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों को अपमान से बचाना, सम्मान दिलाना यह धार्मिक मुद्दा नहीं है.’’
‘रामचरितमानस’ पर दिए गए बयान को समाजवादी पार्टी ने मौर्य का निजी बयान बताया था। ‘रामचरितमानस’ की चौपाई (ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी) के भावार्थ को अच्छी तरह समझने के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं अच्छी तरह से भावार्थ समझा हूं, चूंकि अवधी में इतनी सरल भाषा में लिखी गयी है कि हम ही नहीं, कक्षा पांच में पढ़ने वाला विद्यार्थी भी उसका अर्थ अच्छी तरह समझता है।
इसी चौपाई को स्वामी प्रसाद मौर्य देश की महिलाओं, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों का अपमान बता रहे हैं।उन्होंने कहा ‘‘मैं अपने रुख पर कायम हूं और इस चौपाई को रामचरितमानस से निकालने के लिए मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। गौरतलब है कि सपा ने पिछले दिनों पार्टी की महिला नेता रोली तिवारी मिश्रा और रिचा सिंह को समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया था।दोनों ने ‘रामचरितमानस’ पर मौर्य की टिप्पणी का विरोध किया था।