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अयोध्या आतंकी हमले के अभियुक्तों को मिले फांसी : आचार्य सत्येंद्र दास

गौरतलब है कि पांच जुलाई 2005 को सुबह करीब सवा नौ बजे विवादित रामजन्मभूमि परिसर में असलहों से लैस पांच आतंकी घुस गए थे।

अयोध्या के संत-धर्माचार्यों ने कहा कि विवादित रामजन्मभूमि परिसर में हुए आतंकी हमले के अभियुक्तों को उम्रकैद की बजाय फांसी की सजा होनी चाहिए। विवादित रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा ‘‘ कोर्ट का फैसला संतोषजनक नहीं है। आतंकियों को फांसी की सजा होनी चाहिए। 
उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करे और दुबारा जांच करा कर आतंकी हमले में शामिल अभियुक्तों को फांसी की सजा दिलाए।’’ उन्होंने कहा कि अदालत तो साक्ष्य के आधार पर अपना फैसला सुनाती है। इससे यह साबित होता है कि निवर्तमान सरकार द्वारा इस मामले में दिये गए साक्ष्य कमजोर थे। जिसकी वजह से चार को उम्रकैद की सजा हुई और एक को बरी कर दिया गया। यह मामला बहुत संगीन है। 
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प्रदेश सरकार को शीघ्र ही सुप्रीम कोर्ट में जाकर भगवान श्रीराम के घर पर हुए आतंकी हमले पर न्याय दिलाना चाहिए। अयोध्या सनकादिक आश्रम के महंत कन्हैयादास रामायणी ने कहा कि 14 साल तक प्रतीक्षा के बाद अब जो फैसला आया है यह बेहद निराश करने वाला है। इस तरह के निर्णय से देश की संवैधानिक संस्थाओं से नागरिकों का भरोसा ही उठ जाएगा। 
रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष एवं मणिराम दास छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास के उत्तराधिकारी महंत कमलनयन दास ने कहा कि रामलला की जन्मभूमि पर हमला उनकी कृपा से सांकेतिक हमले के रूप में तब्दील हो गया। यदि आतंकी कहीं अपने इरादे में कामयाब हो गये होते तो देश जल रहा होता। 
उन्होंने कहा कि कोर्ट को इस अपराध की गंभीरता पर विचार करना चाहिए था क्योंकि यह लोग फांसी की सजा के लायक हैं। तोताद्रिमठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी अनन्ताचार्य ने कहा कि देरी से मिलने वाला न्याय भी अन्याय की श्रेणी में आता है। जब ऐसा फैसला हो तो इसे न्याय कत्तई नहीं कहा जा सकता। अपराध की प्रवृत्ति के अनुसार दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए जो कि फैसले में नहीं दिखायी दे रहा है। 
रामजन्मभूमि के अधिग्रहीत परिसर में हमले के इरादे से आए आतंकियों की ओर से किए गए विस्फोट में गाइड रमेश पाण्डेय के चिथड़े उड़ गए थे। उसके शव की पहचान चप्पल और जनेऊ से हुई थी। फैसला आने के बाद गाइड रमेश पाण्डेय की पत्नी सुधा पाण्डेय ने कहा ‘‘ हमारा सुहाग ही नहीं उजड़ बल्कि हमारी पूरी जिंदगी तबाह हो गई। 
अब 14 साल बाद यह फैसला आया है तो आतंकियों को फांसी के बजाय उम्रकैद की सजा सुनाया जाना बहुत पीड़ादायक है। उस समय जांच में प्रदेश सरकार से कहीं गलती जरूर हो गयी वरना इन आतंकवादियों को फांसी की सजा जरूर होती। सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करे और सजा दिलाए।’’ 
गौरतलब है कि पांच जुलाई 2005 को सुबह करीब सवा नौ बजे विवादित रामजन्मभूमि परिसर में असलहों से लैस पांच आतंकी घुस गए थे। आतंकियों ने आधुनिक हथियारों से फायरिंग की थी और बम धमाका किया था। सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में पांचों आतंकी मारे गए थे। 
इस मामले की तत्कालीन फैजाबाद जिले के थाना रामजन्मभूमि में पीएसी जवानों के तरफ से तहरीर पर रामजन्मभूमि पर मुकदमा दर्ज कराया गया था। जांच में आतंकियों को असलहों की सप्लाई और मदद करने में आसिफ इकबाल, मो. नसीम, मो. अजीज, शकील अहमद व डा. इरफान का नाम सामने आया था। 
इन सभी को पुलिस ने गिरफ्तार कर पहले फैजाबाद की जेल में रखा गया था। वर्ष 2006 में हाई कोर्ट के आदेश पर केन्द्रीय कारागार नैनी (इलाहाबाद) दाखिल कर दिया गया था। पांचों आरोपी डा. इरफान, मो। नसीम, मो. अजीज, आसिफ इकबाल उर्फ फारुख व मो. शकील नैनी जेल में निरुद्ध हैं। 
सुरक्षा कारणों से इस मामले की सुनवाई जेल में प्रतिदिन होती रही। विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति व जनजाति) दिनेशचंद्र ने पांचों आरोपियों में चार को आजीवन कारावास और एक अर्थदण्ड की सजा सुनाई है जबकि एक अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया है।

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