बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समेत 32 अभियुक्तों को बड़ी राहत देते हुए सीबीआई की विशेष अदालत ने बुधवार को उन्हें इस मामले में बरी कर दिया।
वहीं, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने कहा कि कानूनी विभाग से विमर्श के बाद फैसले को चुनौती देने के बारे में कोई निर्णय किया जाएगा। अदालत ने कहा कि सीबीआई इस मामले में निष्कर्ष पर पहुंचने योग्य साक्ष्य पेश नहीं कर सकी। जांच एजेंसी बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कारसेवकों की ढांचा विध्वंस के इस मामले में अभियुक्त बनाए गए लोगों से कोई साठगांठ साबित नहीं कर सकी है।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश एस. के. यादव अपराह्न 12 बजकर 10 मिनट पर अदालत कक्ष में पहुंचे और अगले पांच मिनट में फैसले का मुख्य भाग पढ़ते हुए उन्होंने सभी अभियुक्तों को बरी करने का निर्णय सुनाया। न्यायाधीश यादव आज ही औपचारिक रूप से सेवानिवृत्त भी हो रहे हैं।
फैसले के बाद सीबीआई के वकील ललित सिंह ने कहा, ‘‘आज के निर्णय की कॉपी मिलने के बाद इसे सीबीआई मुख्यालय भेजा जाएगा जहां कानूनी विभाग इसका अध्ययन करेगा और फिर इसके सुझाव के अनुरूप अपील दायर करने पर कोई निर्णय किया जाएगा।’’
खुली अदालत में अपना फैसला पढ़ते हुए न्यायाधीश यादव ने कहा कि सीबीआई द्वारा सबूत के तौर पर पेश विवादित ढांचा ढहाए जाने से संबंधित अखबारों की कतरन अदालत में स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि उनकी मूल प्रति अदालत में पेश नहीं की गई। इसके अलावा घटना की तस्वीरों के नेगेटिव भी अदालत को नहीं दिए गए।
विशेष न्यायाधीश ने 2,300 पन्नों के फैसले में यह भी कहा कि घटना के संबंध में सीबीआई ने जो वीडियो कैसेट पेश किए थे, वे सीलबंद लिफाफे में नहीं थे। इसके अलावा उनके वीडियो भी स्पष्ट नहीं थे, लिहाजा उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अदालत में फैसला सुनाए जाते वक्त कुछ अभियुक्तों ने न्यायाधीश की मौजूदगी में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए।
विशेष न्यायाधीश ने अपने निर्णय में यह भी माना कि छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने से कुछ दिन पहले स्थानीय अभिसूचना इकाई ने अपनी रिपोर्ट में किसी अनहोनी की आशंका जताई थी लेकिन उसकी इस सूचना पर कोई कार्रवाई या जांच नहीं की गई।